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Wednesday, December 27, 2023
तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत
तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत, हम अपने ग़म से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खालो न हम खाली।
-जाफ़रअली हसरत
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* 1734- 1792 मीर तकी मीर के समकालीन.... (संदर्भ- रेख़्ता)
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