Showing posts with label . Show all posts
Showing posts with label . Show all posts

Tuesday, January 16, 2024

पूछ कर

पूछ कर उनसे हम उठें-बैठें
ज़िन्दगी ऐसे तो न जी जाए

-डा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

पहली बारिश

पहली बारिश में भी अब तो गंध नहीं उठती
जाने क्यों मिट्टी में वह सोंधापन नहीं रहा

            -चन्द्रभान भारद्वाज

पहले भाप बनूँ

पहले भाप बनूँ उड़ जाऊँ, बूँद बनूँ फिर पानी की
फिर गंगाजी में मिल जाऊँ और गंगाजल हो जाऊँ

                   -अशोक रावत

पूरे गुलशन का

पूरे गुलशन का चलन, चाहे बिगड़ जाए मगर
बदचलन होने से, खुशबू तो बचा ली जाए

          -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

Thursday, January 11, 2024

पत्थरों के बीच

पत्थरों के बीच थोड़ी जिंदगी भी चाहिये
देवताओं के शहर में आदमी भी चाहिये

      -हबीब कैफ़ी

Wednesday, January 10, 2024

पहले भी देखा

पहले भी देखा सत्ता के मद में लोगों को
पर इतना निर्लज्ज और मदहोश नहीं देखा

          -अशोक रावत 

Sunday, January 07, 2024

पेड़ की इक

पेड़ की इक शाख़ से उसका रहा रिश्ता सदा
सुन रही हूँ लौट आया एक पंछी आज घर

            -तारकेश्वरी तरु 'सुधि'

पायल बजा के

पायल बजा के पास से गोरी गुज़र गयी
होता है यूँ भी प्यार का इज़हार गाँव में

            -सलीम शहज़ाद

पगडंडियाँ बबूल

पगडंडियाँ बबूल की पेड़ों से जा मिलीं
छालों को यह मज़ाक़ बुरी तरह खल गया

                   -मुज़फ़्फ़र हन्फ़ी

Friday, January 05, 2024

प्रगति कहाँ हैं

प्रगति कहाँ हैं? होरी के घर में अब भी
भूख, कर्ज, मातम, आँसू, अँधियारे हैं

            -चन्द्रमोहन तिवारी

Monday, January 01, 2024

पास आकर

पास आकर एक सागर से नदी ने यह कहा
डूबने दे मुझको खुद में, थाह देखेंगे तेरी

-रमा सिंह

Sunday, December 31, 2023

पटे न जो तेरी

पटे न जो तेरी सूरज से, चाँद-तारों से 
तो अपने हाथ में जुगनू की रोशनी रखना

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

पहाड़ों ने उगाए हैं

पहाड़ों ने उगाए हैं करोड़ों पेड़ छाती पर, 
करोड़ों पेड़ हैं, जो पर्वतों का ध्यान रखते हैं।
        
                -कमलेश भट्ट कमल 

परिन्दों की

परिन्दों की ज़रा नाज़ुक-सी काया पर न जाना
छुपी है आसमाँ की दास्ताँ पंखों के पीछे
   
            -कमलेश भट्ट कमल

पुराने गिर गये पत्ते

पुराने गिर गये पत्ते तो आएँगे नये इक दिन
कि पतझड़ ख़त्म होता है किसी मधुमास में जाकर

                -कमलेश भट्ट कमल

Thursday, December 28, 2023

परिंदे अब भी

परिंदे अब भी चहकते हैं गुल महकते हैं,
सुना है कुछ भी अभी तक वहाँ नहीं बदला।

-उबैद सिद्दीकी

Saturday, December 23, 2023

पाल ले इक रोग

पाल ले इक रोग नादां ज़िन्दगी के वास्ते,
फ़क़त सेहत के सहारे, ज़िन्दगी कटती नहीं। 

             -फ़िराक़ गोरखपुरी

Saturday, December 09, 2023

पापा घर मत ले आना

पापा घर मत लेकर आना,

रात गए बातें दफ्तर की। 


           -विज्ञान व्रत

पहाड़ों, जंगलों से

पहाड़ों, जंगलों से तो सुरक्षित-सी निकल आई,

मगर शहरों के पास आकर, नदी खतरे में पड़ती है।


                        -ओमप्रकाश यती

परिंदे वो ही जा पाते हैं

परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊँचे आसमानों तक

जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता!


           -जयकृष्ण राय तुषार