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Wednesday, July 31, 2024

सोचा नहीं करते हैं

सोचा नहीं करते हैं बीती हुई बातों को 
बहते हुए अश्कों को हिम्मत से दबा रखना 
    
                -पुष्पराज यादव

साया है कम

साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का 
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ 

            -कैफ़ भोपाली

Saturday, June 22, 2024

सियासत में

सियासत में बातों के मतलब कहाँ? 
ये झाँसे हैं झाँसों में आया न कर

            -वीरेन्द्र कुमार शेखर

Tuesday, April 02, 2024

सब उसकी बात

सब उसकी बात निर्विरोेध मान लेते हैं
मानों वो आदमी न हुआ फैसला हुआ

           -सत्यपाल सक्सेना


(आजकल, अक्तूबर 1983) 

Monday, March 04, 2024

सरज़मीने-हिन्द पर

सरज़मीने-हिन्द पर अक़वामे-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़ले बसते गये हिन्दोस्ताँ बनता गया।
               
                         -फ़िराक़ गोरखपुरी

Sunday, January 21, 2024

सोच जब विज्ञान

सोच जब विज्ञान की आगे बढ़ी
नासमझ इन्सान घबराने लगे

-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

Saturday, January 20, 2024

सल्तनत ने दी

सल्तनत ने दी रियाया को मदद कुछ इस तरह, 
एक टन अहसान, केवल एक रत्ती सब्सिडी

               -जय चक्रवर्ती

Thursday, January 18, 2024

सौ झूठों की

सौ झूठों की ताकत है
सच की अदना हस्ती में 

       -देवेन्द्र आर्य 

Wednesday, January 17, 2024

साथ लाती हैं

साथ लाती हैं हवा की गंदगी भी
इक यही आदत बुरी है खिड़कियों में 

                -अंजू केशव

Tuesday, January 16, 2024

सत्ता के शिखरों

सत्ता के शिखरों पर भी पेशेवर अपराधी
विधि-विधान इनके पाँवों की धूल हो गए हैं

            -अशोक रावत

सूप सभा में

सूप सभा में चुप बैठा है, देख रहा है लोगों को
चलनी उड़ा रही है खिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है

                    -कैलाश गौतम

सत्य है दुबका

 सत्य है दुबका कहीं पर आदिबासी गाँव-सा
झूठ हँसता खिलखिलाता राजधानी की तरह

                  -रामदरश मिश्र

सौ दफ़ा

सौ दफ़ा आदमी को गिराये बिना
टिकने देती नहीं पीठ पर जिंदगी

                -सूर्यभानु गुप्त

सीधे-सच्चे लोगों के

सीधे-सच्चे लोगों के दम पर ही दुनिया चलती है
हम कैसे इस बात को मानें, कहने को संसार कहे

                        -बालस्वरूप राही

सरफिरे लोग

सरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

    -मुनव्वर राना

सैर कर दुनिया

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ 

        -ख़्वाजा मीर दर्द

Thursday, January 11, 2024

सवार हमने

सवार हमने बदल डाले सैकड़ों लेकिन
हमारी पीठ पे सदियों की जीन बाकी है

                 -गणेश गंभीर

Wednesday, January 10, 2024

समापन हो गया

समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का
उदासी आ गई अँगड़ाइयों तक तुम नहीं आए

          -बलबीर सिंह रंग

Friday, January 05, 2024

सर ढका हमने

सर ढका हमने अगर तो पाँव नंगे रह गए
अपने अरमानों की चादर उम्र भर छोटी रही

             -विजय कुमार सिंघल

Thursday, January 04, 2024

सियासत खेलती है

सियासत खेलती है और हम फुटबाल बनते हैं
मज़े की बात तो यह है हमें शिकवा नहीं होता

                -कृष्ण सुकुमार