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Sunday, February 23, 2025
सोचा नहीं करते हैं
सोचा नहीं करते हैं बीती हुई बातों को
बहते हुए अश्कों को हिम्मत से दबा रखना
-पुष्पराज यादव
Wednesday, July 31, 2024
साया है कम
साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ
-
कैफ़ भोपाली
Saturday, June 22, 2024
सियासत में
सियासत में बातों के मतलब कहाँ?
ये झाँसे हैं झाँसों में आया न कर
-वीरेन्द्र कुमार शेखर
Tuesday, April 02, 2024
सब उसकी बात
सब उसकी बात निर्विरोेध मान लेते हैं
मानों वो आदमी न हुआ फैसला हुआ
-सत्यपाल सक्सेना
(आजकल, अक्तूबर 1983)
Monday, March 04, 2024
सरज़मीने-हिन्द पर
सरज़मीने-हिन्द पर अक़वामे-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़ले बसते गये हिन्दोस्ताँ बनता गया।
-फ़िराक़ गोरखपुरी
Sunday, January 21, 2024
सोच जब विज्ञान
सोच जब विज्ञान की आगे बढ़ी
नासमझ इन्सान घबराने लगे
-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर
Saturday, January 20, 2024
सल्तनत ने दी
सल्तनत ने दी रियाया को मदद कुछ इस तरह,
एक टन अहसान, केवल एक रत्ती सब्सिडी
-जय चक्रवर्ती
Thursday, January 18, 2024
सौ झूठों की
सौ झूठों की ताकत है
सच की अदना हस्ती में
-देवेन्द्र आर्य
Wednesday, January 17, 2024
साथ लाती हैं
साथ लाती हैं हवा की गंदगी भी
इक यही आदत बुरी है खिड़कियों में
-अंजू केशव
Tuesday, January 16, 2024
सत्ता के शिखरों
सत्ता के शिखरों पर भी पेशेवर अपराधी
विधि-विधान इनके पाँवों की धूल हो गए हैं
-अशोक रावत
सूप सभा में
सूप सभा में चुप बैठा है, देख रहा है लोगों को
चलनी उड़ा रही है खिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है
-कैलाश गौतम
सत्य है दुबका
सत्य है दुबका कहीं पर आदिबासी गाँव-सा
झूठ हँसता खिलखिलाता राजधानी की तरह
-रामदरश मिश्र
सौ दफ़ा
सौ दफ़ा आदमी को गिराये बिना
टिकने देती नहीं पीठ पर जिंदगी
-सूर्यभानु गुप्त
सीधे-सच्चे लोगों के
सीधे-सच्चे लोगों के दम पर ही दुनिया चलती है
हम कैसे इस बात को मानें, कहने को संसार कहे
-बालस्वरूप राही
सरफिरे लोग
सरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
-मुनव्वर राना
सैर कर दुनिया
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
-ख़्वाजा मीर दर्द
Thursday, January 11, 2024
सवार हमने
सवार हमने बदल डाले सैकड़ों लेकिन
हमारी पीठ पे सदियों की जीन बाकी है
-गणेश गंभीर
Wednesday, January 10, 2024
समापन हो गया
समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का
उदासी आ गई अँगड़ाइयों तक तुम नहीं आए
-बलबीर सिंह रंग
Friday, January 05, 2024
सर ढका हमने
सर ढका हमने अगर तो पाँव नंगे रह गए
अपने अरमानों की चादर उम्र भर छोटी रही
-विजय कुमार सिंघल
Thursday, January 04, 2024
सियासत खेलती है
सियासत खेलती है और हम फुटबाल बनते हैं
मज़े की बात तो यह है हमें शिकवा नहीं होता
-कृष्ण सुकुमार
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