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Thursday, February 15, 2024

बरसों के रत-जगों

बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे
सूरज निकल रहा था कि नींद आ गई मुझे

                -क़ैसर-उल जाफ़री


[1926 - 2005]

दुनिया भर की

दुनिया भर की यादें हम से मिलने आती हैं
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है

                    -क़ैसर-उल जाफ़री

तुम्हारे शहर का

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे

                    -क़ैसर-उल जाफ़री

Wednesday, February 14, 2024

इतना सन्नाटा है

इतना सन्नाटा है बस्ती में कि डर जाएगा
चाँद निकला भी तो चुप-चाप गुज़र जाएगा

                    -क़ैसर-उल जाफ़री