Showing posts with label -आदिल मंसूरी. Show all posts
Showing posts with label -आदिल मंसूरी. Show all posts

Monday, January 22, 2024

लम्हे के टूटने की

लम्हे के टूटने की सदा सुन रहा था मैं 
झपकी जो आँख सर पे नया आसमान था

-आदिल मंसूरी

ऐसे डरे हुए हैं

ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर

                    -आदिल मंसूरी

Thursday, December 28, 2023

कब तक पड़े रहोगे

कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में, 
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार। 

-आदिल मंसूरी

मेरे टूटे हौसले के

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया

    -आदिल मंसूरी 



[आदिल मंसूरी, 18- 5- 1936   -    06-11-2008, अहमदाबाद]