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Sunday, January 07, 2024

जिस तरह चाहो

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं

      -दुष्यन्त कुमार

Friday, January 05, 2024

यहाँ तक आते-आते

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

              -दुष्यन्त कुमार

Saturday, December 30, 2023

तुम्हारे पाँव के नीचे

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

-दुष्यंत कुमार

Friday, December 08, 2023

मुझ में रहते हैं

मुझ में रहते हैं करोड़ों लोग चुप केसे रहूँ

हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है


            -दुष्यंत कुमार

चट्टानों पर खड़ा हुआ

चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की

सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुजरा


            -दुष्यंत कुमार

Thursday, December 07, 2023

मेले में भटके होते तो

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे

                -दुष्यंत कुमार

थोड़ी आँच बची रहने दो

थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ निकलने दो
कल देखोगी कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे

                -दुष्यंत कुमार

एक चिंगारी कहीं से

एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है

                -दुष्यंत कुमार

मेरे सीने में नहीं

मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

                -दुष्यंत कुमार

सिर्फ हंगामा खड़ा करना

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

            -दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

                -दुष्यंत कुमार

ये सारा जिस्म झुक कर

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

                    -दुष्यंत कुमार 

कहाँ तो तय था

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

                -दुष्यंत कुमार