जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं
-दुष्यन्त कुमार
मुझ में रहते हैं करोड़ों लोग चुप केसे रहूँ
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है
-दुष्यंत कुमार
चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की
सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुजरा
-दुष्यंत कुमार