चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
-मुनव्वर राना
चन्द दानों के लिए निकती जो बुलबुल नीड़ से
लौटकर आई भी तो टूटे हुए पर लाएगी
-कुँअर बेचैन
चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की
सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुजरा
-दुष्यंत कुमार