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Wednesday, February 14, 2024

'ज़ौक़' जो मदरसे

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे

                -शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

जब तुझे याद

जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई

                    -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Wednesday, January 24, 2024

जिसको नहीं

जिसको नहीं लगाव देश से ना भाषा की चिन्ता है
उसके मरने को चुल्लूभर पानी 'भक्त' घनेरा है 

                            -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

Wednesday, January 17, 2024

जहाँ पिछले कई

जहाँ पिछले कई वर्षों से काले नाग बैठे हैं
वहाँ इक घोंसला चिड़ियों का था दादी बताती है

    -मुनव्वर राना 

Tuesday, January 16, 2024

ज़माना रोक के

ज़माना रोक के कब तक रखेगा सूरज को
हमारे घर में भी धूप आयेगी कभी न कभी

                -अतुल अजनबी

जहाँ आप

जहाँ आप पहुँचे छलाँगें लगाकर
वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे
 
             -रामदरश मिश्र

Monday, January 15, 2024

ज़माने के ख़ुदा

ज़माने के ख़ुदा या नाख़ुदा कोशिश भले कर लें
गुनहगारों की कश्ती है, नदी में डूब जायेगी

              -अंसार कम्बरी

Thursday, January 11, 2024

जो भाई से

जो भाई से ख़फा होकर के आँगन बाँट लेता है
वो माँ की आँख में उतरी नमी को भूल जाता है

    -रामबाबू रस्तोगी

जिक्र जिसका

जिक्र जिसका न किताबों में न चर्चाओं में
जाने किस वक्त की तहजीब का खंडहर हूँ मैं

               -कृष्णानन्द चौबे

जब तक वे

जब तक वे समंदर में समाते नहीं तब तक
दरिया तो किनारों से, किनारा नहीं करते

                  -कृष्णानन्द चौबे


.....................
[5 अगस्त 1931, कायमगंज, फर्रुखाबाद

जो सियासत कहे

जो सियासत कहे उस पे कैसे चलें
आदमी हैं मशीनों के पुर्जे नहीं

      -विनय मिश्र

Wednesday, January 10, 2024

जंग तो ख़ुद ही

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है 
जंग क्या मसअलों का हल देगी

                -साहिर लुधियानवी

Sunday, January 07, 2024

जिस तरह चाहो

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं

      -दुष्यन्त कुमार

Friday, January 05, 2024

जुड़ी हैं चाटुकारों

जुड़ी हैं चाटुकारों की सभाएँ,
यहाँ हर मूल्य का उपहास होगा

      -शिव ओम अम्बर

Thursday, January 04, 2024

जो उलझ कर

जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में,
गाँव तक वह रोशनी आएगी कितने साल में?

              -अदम गोंडवी

जो ऊँचे चढ़ के

जो ऊँचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे दिखते हैं हरदम
प्रफुल्लित वृक्ष की यह भूमि कुसुमागार करते हैं

          -जयशंकर प्रसाद

जिनके जबड़ों से

जिनके जबड़ों से खूँ टपकता है
उनकी खिदमत बजा रहे हैं हम

       -कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

जैसे कोई अफसर

जैसे कोई अफसर बात करे चपरासी से
बूढ़े बाप से अब यूँ बेटे बातें करते हैं   
   
    -अहमद कमाल हशमी 

ज़रा से शक

ज़रा से शक की चोटों ने दरारें डाल दीं दिल में
समझदारी रही होती तो घर टूटा नहीं होता

                -कृष्ण सुकुमार

जिन पे लफ़्ज़ों के

जिन पे लफ़्ज़ों के दिखावे के सिवा कुछ भी नहीं
उनको फनकार बनाने पे तुली है दुनिया

               -कुँअर बेचैन