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Tuesday, April 02, 2024

खिड़कियाँ खोलो

खिड़कियाँ खोलो जरा ताजी हवा आने तो दो
आदमी को आदमी की गंध भर पाने तो दो 

         -कमलेश भट्ट कमल


(आजकल, अक्तूबर 1982) 

Sunday, January 07, 2024

आँधियों का

आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले,
पर दिये का भी सफ़र चलता रहेगा।

            -कमलेश भट्ट कमल

Sunday, December 31, 2023

समय तो रेत है

समय तो रेत है इस रेत को रुकना नहीं आता,
रखो मुट्ठी में चाहे जितना कसकर, हमने देखा है।

                -कमलेश भट्ट कमल

हमें झूठों की आदत

हमें झूठों की आदत पड़ गयी कुछ इस तरह लोगो
कोई सच्चा दिखाई दे तो अब हम चौंक जाते हैं!

                    -कमलेश भट्ट कमल

रह नहीं सकते

रह नहीं सकते उड़ानों में ही ज़्यादा देर तक,
आसमाँ वाले परिन्दों को धरा भी चाहिए। 
  
                    -कमलेश भट्ट कमल 

जिसे देखो वही

जिसे देखो वही पाले है भ्रम 'दुष्यन्त' होने का
भले उसको ग़ज़ल की एबीसीडी भी नहीं आती!

                -कमलेश भट्ट कमल

करोड़ों देवता हैं

करोड़ों देवता हैं, उनके लाखों-लाख मंदिर हैं
मुसीबत आए तो जाने कहाँ भगवान सोता है!

                -कमलेश भट्ट कमल

कभी कुछ देर बैठो

कभी कुछ देर बैठो पास तो ख़ुद जान जाओगे, 
स्वयं में कितनी बेचैनी कोई सागर समेटे है!

      -कमलेश भट्ट कमल

पहाड़ों ने उगाए हैं

पहाड़ों ने उगाए हैं करोड़ों पेड़ छाती पर, 
करोड़ों पेड़ हैं, जो पर्वतों का ध्यान रखते हैं।
        
                -कमलेश भट्ट कमल 

परिन्दों की

परिन्दों की ज़रा नाज़ुक-सी काया पर न जाना
छुपी है आसमाँ की दास्ताँ पंखों के पीछे
   
            -कमलेश भट्ट कमल

पुराने गिर गये पत्ते

पुराने गिर गये पत्ते तो आएँगे नये इक दिन
कि पतझड़ ख़त्म होता है किसी मधुमास में जाकर

                -कमलेश भट्ट कमल

तोड़ डालेंगी

तोड़ डालेंगी तुझे ये चुप्पियाँ खामोशियाँ
पेड़-पौधों, पत्थरों से ही सही, संवाद कर!

                -कमलेश भट्ट कमल

मुँह माँगी क़ीमत पर

मुँह माँगी क़ीमत पर फिर से झूठ बिक गया
सच्चाई को लेकर कितना मोल-भाव है?

                -कमलेश भट्ट कमल

Friday, December 29, 2023

कौन कहता है

कौन कहता है सफर में हम अकेले रह गए, 
साथ हैं अब भी हमारे, क़ाफ़िले उम्मीद के।

            -कमलेश भट्ट कमल

Sunday, December 24, 2023

अलग यह बात है

अलग यह बात है वह आज या फिर कल निकलता है, 
बहुत मुश्किल सवालों का भी लेकिन हल निकलता है।

      -कमलेश भट्ट कमल

जंगल से बाहर आये

जंगल से बाहर आये तो अरसा बीत गया,
इंसानों में फिर भी बाक़ी कितना जंगल है!

        -कमलेश भट्ट कमल

मैं थोड़ी देर जिससे

मैं थोड़ी देर जिससे सर टिकाकर बैठ लेता हूँ, 
वो पत्थर की नहीं, उम्मीद की दीवार है कोई।

      -कमलेश भट्ट कमल

हमने वर्षों विष पिलाकर

हमने वर्षों विष पिलाकर आज़माया है बहुत,
अब हमें भी विष पिलाकर आज़माएगी नदी।

               -कमलेश भट्ट कमल

टूट चुकी है इन्सानों की

टूट चुकी है इन्सानों की हिम्मत कल की आँधी से,
लेकिन फिर भी आज न तिनके लाना छूटा चिड़ियों का।   
     
        -कमलेश भट्ट कमल

मेरी कोशिश ये

मेरी कोशिश ये रहती है कि सच ज़िन्दा रहे मुझमें,
ज़माना ये समझता है कि शायद सिरफिरा हूँ मैं।

           -कमलेश भट्ट कमल