अब तो पूरा जिस्म ही कुछ इस तरह बीमार है
पीठ बोझा हो गई है पेट पल्लेदार है
-कुँअर बेचैन
(आजकल, जून 1991)
उसने फेंके मुझ पे पत्थर और मैं जल की तरह,
और ऊपर, और ऊपर, और ऊपर उठ गया।
-कुँअर बेचैन
उँगलियाँ तो एक सीमा तक बढ़ीं फिर रुक गईं
और उसके बाद बस नाखून ही बढ़ते रहे
-कुँअर बेचैन
चन्द दानों के लिए निकती जो बुलबुल नीड़ से
लौटकर आई भी तो टूटे हुए पर लाएगी
-कुँअर बेचैन