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-आलोक श्रीवास्तव
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Friday, December 29, 2023
नज़दीकी अक्सर
नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती है,
सोच-समझ कर घुलना-मिलना, अपने रिश्ते-दारों में।
-आलोक श्रीवास्तव
चहकते घर
चहकते घर, महकते खेत और वो गाँव की गलियाँ,
जिन्हें हम छोड़ आए, उन सभी को जीते रहते हैं।
-आलोक श्रीवास्तव
भीतर से ख़ालिस
भीतर से ख़ालिस जज़्बाती और ऊपर से ठेठ-पिता,
अलग, अनूठा, अनबूझा-सा इक तेवर थे बाबू जी।
-आलोक श्रीवास्तव
घर में झीने-रिश्ते मैं ने
घर में झीने-रिश्ते मैं ने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्माँ।
-आलोक श्रीवास्तव
तुम सोच रहे हो बस
तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।
-आलोक श्रीवास्तव
Monday, December 25, 2023
सफलता के सफ़र में
सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत कि कुछ सोचें,
मगर जब चोट लगती है मुक़द्दर याद आता है।
-आलोक श्रीवास्तव
ये जिस्म क्या है
ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है,
यहीं सँभाल के पहना, यहीं उतार चले।
-आलोक श्रीवास्तव
Thursday, December 07, 2023
ये सोचना ग़लत है
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं
-आलोक श्रीवास्तव
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