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Wednesday, January 24, 2024

छीना था यह

छीना था यह वतन कभी हमने उन श्वेत भेड़ियों से
मगर आज चप्पे-चप्पे पर ही साँपों का डेरा है

                      -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

जिसको नहीं

जिसको नहीं लगाव देश से ना भाषा की चिन्ता है
उसके मरने को चुल्लूभर पानी 'भक्त' घनेरा है 

                            -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

बढ़ते जाते

बढ़ते जाते टैक्स दनादन जनता भूखों मरती है
रिश्वत का बाज़ार गरम अब बिल्कुल खुल्लमखुला है 

                            -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

Monday, December 25, 2023

झूठ के सिर पर

झूठ के सिर पर मुकुट है विक्रमी
'भक़्त' सच्चा आदमी संकट में है

        -गंगाभक़्त सिंह 'भक़्त'


[गंगाभक़्त सिंह भक़्त, 1924-  , फतेहगढ़, फर्रुखाबाद, उ. प्र.]