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Monday, June 17, 2024
आई थी
आई थी जिस हिसाब से आँधी
इस को सोचो तो पेड़ कम टूटे
-सूर्यभानु गुप्त
Tuesday, April 02, 2024
अब तो पूरा जिस्म
अब तो पूरा जिस्म ही कुछ इस तरह बीमार है
पीठ बोझा हो गई है पेट पल्लेदार है
-कुँअर बेचैन
(आजकल, जून 1991)
Monday, March 04, 2024
आने वाली नस्लें
आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-अस्रो
जब ये खयाल आयेगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था
-फ़िराक़ गोरखपुरी
Wednesday, February 14, 2024
अब टूट गिरेंगी
अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अब गुल से नज़र
अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ रुख़्सत हो हम लुत्फ़-ए-बहाराँ भूल गए
-असरार-उल-हक़ ‘मजाज़ लखनवी’
Monday, January 22, 2024
आइना देख के
आइना देख के जीने वालो
दौर-ए-हाज़िर के भी तेवर देखो
-शरर फतेहपुरी
Sunday, January 21, 2024
अब इत्र भी
अब इत्र भी मलो तो तकल्लुफ़ की बू कहाँ
वो दिन हवा हुए जो पसीना गुलाब था
-लाला माधव राम जौहर
[लाला माधव राम जौहर- 1810-1890, फ़र्रुख़ाबाद, उ.प्र.]
Monday, January 15, 2024
आदमी में आदमीयत
आदमी में आदमीयत और खुशबू फूल में
हो सके तो शहर में अब ये खज़ाना ढूँढ़ना
-नूर मुहम्मद 'नूर'
Thursday, January 11, 2024
अपनी साज़िश में
अपनी साज़िश में हवाएँ हो गयीं फिर कामयाब
रह गयी फिर बादलों के बीच फँस कर रोशनी
-बुद्धिसेन शर्मा
Wednesday, January 10, 2024
अंदाज शातिराना है
अंदाज शातिराना है खाँसी का आपकी
खाँसी नहीं है आपको, ऐसे न खाँसिए
-डा० अश्वघोष
अजब है रात से
अजब है रात से आँखों का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है
-नासिर काज़मी
Sunday, January 07, 2024
आँगन में धूप
आँगन में धूप, धूप को ओढ़े उदासियाँ
घर में थे ज़िंदगी के निशाँ कम बहुत ही कम
-पी पी श्रीवास्तव ‘रिंद’
अब न वह गीत
अब न वह गीत, न चौपाल, न पनघट, न अलाव
खो गये शहर के हंगामें में देहात मेरे
-फज़ील जाफ़री
आँधियों का
आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले,
पर दिये का भी सफ़र चलता रहेगा।
-कमलेश भट्ट कमल
अपने परों को लेकर
अपने परों को लेकर हर लम्हा डर रही है
कांटों के जंगलों से तितली गुजर रही है
-अरुण साहिबाबादी
आँधियों से भी
आँधियों से भी दरख्तों में न हो टकराव सो
दूरियाँ लाजिम हैं इतनी दो तनों के बीच में
-राजगोपाल सिंह
Saturday, January 06, 2024
आग किसी के
आग किसी के घर लगती हो अपना ही घर जलता है
यही सोचकर, यही समझकर, चलकर आग बुझानी है
-मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश'
Friday, January 05, 2024
अक्स गर बेदाग़ है
अक्स गर बेदाग़ है तो खुद से शरमाते हो क्यों
आईने के सामने आने से कतराते हो क्यों ?
-माधव कौशिक
आज उनके हाथ में
आज उनके हाथ में है इस चमन की आबरू
कल थे जिनके बिस्तरों से तितिलियों के पर मिले
-डॉ. सन्तोष पाण्डेय
आदमी बढ़ता
आदमी बढ़ता गया है चाँद तक
आदमीयत की विदाई हो गयी
-प्रहलाद नारायण बाजपेयी
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