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Wednesday, February 14, 2024
अब गुल से नज़र
अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ रुख़्सत हो हम लुत्फ़-ए-बहाराँ भूल गए
-असरार-उल-हक़ ‘मजाज़ लखनवी’
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