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Thursday, January 04, 2024

सियासत खेलती है

सियासत खेलती है और हम फुटबाल बनते हैं
मज़े की बात तो यह है हमें शिकवा नहीं होता

                -कृष्ण सुकुमार

मज़ा आया तो

मज़ा आया तो फिर इतना मज़ा आया मुसीबत में
ग़मों के साथ अपनेपन का इक रिश्ता निकल आया

                -कृष्ण सुकुमार

मेरी मजबूरियाँ

मेरी मजबूरियाँ मेरे उसूलों से हैं टकरातीं
जहाँ पर सर उठाना था, वहीं पर सर झुकाता हूँ

            -कृष्ण सुकुमार

ज़रा से शक

ज़रा से शक की चोटों ने दरारें डाल दीं दिल में
समझदारी रही होती तो घर टूटा नहीं होता

                -कृष्ण सुकुमार

Wednesday, January 03, 2024

कभी गिन कर

कभी गिन कर नहीं देखे सफ़र में मील के पत्थर
नज़र मंज़िल पे रक्खी, हर क़दम रफ़्तार पर रक्खा

                    -कृष्ण सुकुमार