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Tuesday, January 16, 2024

दरिया का ये

दरिया का ये उफान घड़ी दो घड़ी का है
कुछ देर किनारे पे ठहर क्यों नहीं जाते
     
             -कृष्णानन्द चौबे

Thursday, January 11, 2024

क्या नहीं मिल रहा

क्या नहीं मिल रहा यहां आजकल
बिक रहा है सरे आम ईमान तक

           -कृष्णानन्द चौबे

जिक्र जिसका

जिक्र जिसका न किताबों में न चर्चाओं में
जाने किस वक्त की तहजीब का खंडहर हूँ मैं

               -कृष्णानन्द चौबे

जब तक वे

जब तक वे समंदर में समाते नहीं तब तक
दरिया तो किनारों से, किनारा नहीं करते

                  -कृष्णानन्द चौबे


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[5 अगस्त 1931, कायमगंज, फर्रुखाबाद