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व्योम के पार
कविता की पाठशाला
Friday, December 29, 2023
दोपहर तक बिक गया
दोपहर तक बिक गया बाजार में एक -एक झूठ,
शाम तक बैठे रहे हम अपनी सच्चाई लिए।
-विजेन्द्र सिंह परवाज़
चला जाता हूँ
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे हवादिस से,
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए।
-असगर गोंडवी
Thursday, December 28, 2023
कहीं न सब को
कहीं न सब को समुंदर बहा के ले जाए,
ये खेल ख़त्म करो कश्तियाँ बदलने का।
-शहरयार
उम्र भर सच ही
उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने।
-शहरयार
बहुत पहले से
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं,
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
-फिराक़ गोरखपुरी
ग़रज़ कि काट दिए
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।
-फिराक़ गोरखपुरी
इक उम्र कट गई
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में,
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात।
-फिराक़ गोरखपुरी
एक मुद्दत से
एक मुद्दत से तेरी याद भी आयी न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं।
-फ़ि
राक़ गोरखपुरी
अब रात की
अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी,
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा।
-शहरयार
कब तक पड़े रहोगे
कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में,
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार।
-आदिल मंसूरी
मेरे टूटे हौसले के
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
-आदिल मंसूरी
[आदिल मंसूरी, 18- 5- 1936 - 06-11-2008, अहमदाबाद]
कमर बाँधे हुए
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं,
बहुत आगे गए, बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं।
-इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
गुज़रने को तो
गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे,
ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा।
-कैफ़ी आज़मी
शोर यूँही न
शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।
-कैफ़ी आज़मी
मैं रौशनी हूँ
मैं रौशनी हूँ, तो मेरी पहुँच कहाँ तक है,
कभी चराग़ के नीचे बिखर के देखूँगी।
-अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
सँभाला होश जब
सँभाला होश जब हम ने तो कुछ मुख़्लिस अज़ीज़ों ने,
कई चेहरे दिए और एक पत्थर की ज़बाँ हम को।
-अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
परिंदे अब भी
परिंदे अब भी चहकते हैं गुल महकते हैं,
सुना है कुछ भी अभी तक वहाँ नहीं बदला।
-उबैद सिद्दीकी
काले चेहरे
काले चेहरे काली ख़ुश्बू सब को हम ने देखा है,
अपनी आँखों से उन को शर्मिंदा हर इक बार किया।
-मीना कुमारी 'नाज़'
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* सुप्रसिद्ध सिनेतारिका 'मीना कुमारी' ( 1933 - 1972 )
बैठे हैं रास्ते में
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडर सजा कर,
शायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे।
-मीना कुमारी 'नाज़'
झूटे सिक्कों में भी
झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदे करना, काम है इन बंजारों का।
-इब्न-ए-इंशा
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