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व्योम के पार
कविता की पाठशाला
Sunday, January 07, 2024
पेड़ की इक
पेड़ की इक शाख़ से उसका रहा रिश्ता सदा
सुन रही हूँ लौट आया एक पंछी आज घर
-तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
पायल बजा के
पायल बजा के पास से गोरी गुज़र गयी
होता है यूँ भी प्यार का इज़हार गाँव में
-सलीम शहज़ाद
पगडंडियाँ बबूल
पगडंडियाँ बबूल की पेड़ों से जा मिलीं
छालों को यह मज़ाक़ बुरी तरह खल गया
-मुज़फ़्फ़र हन्फ़ी
किसे खबर थी
किसे खबर थी हमें राहबर ही लूटेंगे
बड़े खुलूस से हम कारवां के साथ रहे।
-हबीब जालिब
दाना लेने उड़े
दाना लेने उड़े परिंदे कुछ
आ के देखा तो आशियाँ गायब
-सुल्तान अहमद
तुमको सच बोलने की
तुमको सच बोलने की आदत है
कैसे हर एक से निभाओगे?
-सुल्तान अहमद
कर लिया पूरे
कर लिया पूरे समंदर का सफ़र
जाके डूबे गाँव के तालाब पर
-बाक़र नक़वी
अब न वह गीत
अब न वह गीत, न चौपाल, न पनघट, न अलाव
खो गये शहर के हंगामें में देहात मेरे
-फज़ील जाफ़री
आँधियों का
आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले,
पर दिये का भी सफ़र चलता रहेगा।
-कमलेश भट्ट कमल
अपने परों को लेकर
अपने परों को लेकर हर लम्हा डर रही है
कांटों के जंगलों से तितली गुजर रही है
-अरुण साहिबाबादी
कुछ पल को
कुछ पल को हो गया था मैं भड़का हुआ चराग़
कुछ देर आँधियों से भी सँभला न जा सका
-त़ारिक क़मर
आँधियों से भी
आँधियों से भी दरख्तों में न हो टकराव सो
दूरियाँ लाजिम हैं इतनी दो तनों के बीच में
-राजगोपाल सिंह
उदास धूप का
उदास धूप का मंजर बदलने आया है
कि आज बर्फ पर सूरज टहलने आया है।
-ज्ञान प्रकाश विवेक
उमस, अँधेरा, घुटन
उमस, अँधेरा, घुटन, उदासी, ये बंद कमरों की खूबियाँ हैं
खुली रखो गर ये खिड़कियाँ तो कहीं से ताज़ा हवा भी आए
-सुल्तान अहमद
जिस तरह चाहो
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं
-दुष्यन्त कुमार
चाहता है वो
चाहता है वो कि दरिया सूख जाए
रेत का व्यापार करना चाहता है
-ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
Saturday, January 06, 2024
आग किसी के
आग किसी के घर लगती हो अपना ही घर जलता है
यही सोचकर, यही समझकर, चलकर आग बुझानी है
-मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश'
किनारों ने नदी को
किनारों ने नदी को बाँध लेने का भरम पाला
नदी बिफरी, किनारे तोड़ मदमाती हुई चल दी
-विनोद तिवारी
ये माँ ही है
ये माँ ही है जो रह जाती है बस दो टूक रोटी पर
मगर बच्चों को अपने पेट-भर रोटी खिलाती है
-राजेन्द्र वर्मा
रात कितनी भी
रात कितनी भी घनी हो सुबह आयेगी ज़रूर
लौट आया आपका विश्वास तो अच्छा लगा
-रामदरश मिश्र
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