Monday, January 15, 2024

गेहूँ बोये किन्तु

गेहूँ बोये किन्तु खेत में फसल उगी बन्दूकों की
गाँव हो गये कैसे चम्बल बरगद ने सब देखा है

                -राजगोपाल सिंह

ख़ुदा के घर

ख़ुदा के घर उन्हें बख़्शीश मिलती है जो अपने
गुनाहों का घड़ा भरने से पहले फोड़ देते है

        -मासूम ग़ाज़ियाबादी

खिड़कियों से

खिड़कियों से जो मुझको दिखता था
मैंने उतना ही आस्मां समझा

             -गुलशन मदान

कहीं दिखे ही

कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें
कि जिनके साए की बूढ़े मिसाल देते हैं

                -द्विजेन्द्र द्विज

क्या राजा

क्या राजा, क्या दरबारी, क्या नौकर-चाकर, सब
राजकोष को खाने में मशगूल हो गए हैं

                 -अशोक रावत

कहते थे जिसे

कहते थे जिसे दूध का धोया हुआ सभी
निकला वो रँगा स्यार है, सच कह रहा हूँ मैं

      -कैलाश गौतम

कुछ करो ये

कुछ करो ये ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी जैसी लगे
नहीं होती है बस खाने कमाने के लिये

                 -कमलेश द्विवेदी

उठाती है जो

उठाती है जो ख़तरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खज़ाना ढूँढ़ लेती है

                      -राजेन्द्र तिवारी

कोई उन्हें भी

कोई उन्हें भी तो समझाए कोई कुछ उन से भी कहे
जब देखो तब आ जाते हैं मुझ को ही समझाने लोग

-रईस रामपुरी

इस सदी सी

इस सदी सी बेहया कोई सदी पहले न थी
इस क़दर बेआब आँखों की नदी पहले न थी

                 -नूर मुहम्मद 'नूर'

उसका भाषण

उसका भाषण था कि मक्कारों का जादू 'एहतराम'
मैं कमीना था कि बुज़दिल, मुग्ध श्रोताओं में था

                    -एहतराम इस्लाम

कितने दिन

कितने दिन तक बंद ही रखा मुहूरत के लिये
एक कस्बे की नदी पर पुल नया बनने के बाद

                      -हरजीत सिंह

कोई दीवाना

कोई दीवाना जब होठों तक अमरित-घट ले आया
काल-बली बोला मैने तुझसे बहुतेरे देखे हैं 

      -सोम ठाकुर

कोंपल की हिफाज़त

कोंपल की हिफाज़त का हमें दे के भरोसा 
कितने ही कटे ज़िन्दा शजर देख रहा हूँ

              -अखिलेश तिवारी

एक मंज़िल और

एक मंज़िल और हर मंज़िल के बाद आई नज़र
रफ़्ता रफ़्ता हो गया काफूर जीने का मज़ा
      
               -ओम प्रकाश नदीम

आदमी में आदमीयत

आदमी में आदमीयत और खुशबू फूल में
हो सके तो शहर में अब ये खज़ाना ढूँढ़ना

              -नूर मुहम्मद 'नूर'

एक झूठे सच

एक झूठे सच की खातिर कितने सच झुठला दिए
आपकी दानाईयों ने मेरा दिल दहला दिया

    -संजय ग्रोवर

इन्सान की तलाश

इन्सान की तलाश में बस्ती के लोग थे
इन बस्तियों को इतने ख़ुदा कौन दे गया

          -महेन्द्र हुमा 

कुछ लुटेरों ने

कुछ लुटेरों ने भी पहना है फ़रिश्तों का लिबास
इनके बारे में ग़लतफ़हमी न पाली जाए

                -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

दोस्तों ने जिसे

दोस्तों ने जिसे डुबाया हो
वो ज़रा देर से सँभलता है

    -बालस्वरूप राही