Tuesday, January 16, 2024

ज़माना रोक के

ज़माना रोक के कब तक रखेगा सूरज को
हमारे घर में भी धूप आयेगी कभी न कभी

                -अतुल अजनबी

जहाँ आप

जहाँ आप पहुँचे छलाँगें लगाकर
वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे
 
             -रामदरश मिश्र

तमाम मौके

तमाम मौके लगे हाथ चलते-चलते भी
कभी-कभी जो हमें दौड़कर नहीं मिलते

            -ज़हीर कुरेशी

दे सको तो

दे सको तो कहूँ और क्या चाहिये
साँस घुटती है ताज़ा हवा चाहिये

              -महेन्द्र हुमा 

पहली बारिश

पहली बारिश में भी अब तो गंध नहीं उठती
जाने क्यों मिट्टी में वह सोंधापन नहीं रहा

            -चन्द्रभान भारद्वाज

याद अगर

याद अगर हम रखेंगे तो मर जाएँगे
इसलिए हादसों को भुलाना भी है

    -दीक्षित दनकौरी

ये मुमकिन था

ये मुमकिन था अँधेरा हार जाता
हमें कुछ और जलना चाहिये था

             -तुफ़ैल चतुर्वेदी

ये अपनी हद

ये अपनी हद से जो गुज़रे तबाह कर देंगे
समन्दरों को न छेड़ो, हदों में  दो

               -अतुल अजनबी

सत्ता के शिखरों

सत्ता के शिखरों पर भी पेशेवर अपराधी
विधि-विधान इनके पाँवों की धूल हो गए हैं

            -अशोक रावत

सूप सभा में

सूप सभा में चुप बैठा है, देख रहा है लोगों को
चलनी उड़ा रही है खिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है

                    -कैलाश गौतम

सत्य है दुबका

 सत्य है दुबका कहीं पर आदिबासी गाँव-सा
झूठ हँसता खिलखिलाता राजधानी की तरह

                  -रामदरश मिश्र

सौ दफ़ा

सौ दफ़ा आदमी को गिराये बिना
टिकने देती नहीं पीठ पर जिंदगी

                -सूर्यभानु गुप्त

हमारे ही

हमारे ही क़दम छोटे थे वरना
यहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था

       -हस्तीमल हस्ती

चलती फिरती

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है 

                    -मुनव्वर राना

दरिया का ये

दरिया का ये उफान घड़ी दो घड़ी का है
कुछ देर किनारे पे ठहर क्यों नहीं जाते
     
             -कृष्णानन्द चौबे

दिलों की साँकलें

दिलों की साँकलें और ज़हन की ये कुंडियाँ खोलो
बड़ी भारी घुटन है, द्वार खोलो, खिड़कियाँ खोलो

              -कुँअर बेचैन

दुश्मनों से

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा 
दोस्तों को आज़माते जाइए 

            -ख़ुमार बाराबंकवी

बिफरे समुंदरों

बिफरे समुंदरों पे बरसता चला गया 
आया न अब्र धूप में तपते मकान पर
 
                -रईस बाग़ी

बाग़ के सबसे

बाग़ के सबसे बड़े दुश्मन वही
कर रहे जो बाग़वानी इन दिनों

      -कमल किशोर 'भावुक'

बारूदों, अंगारों

बारूदों, अंगारों, अंधे कुओं, सुरंगों, साँपों को
झेल रहीं सदियों से दिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है

                  -कैलाश गौतम