ग़ज़लों के चुनिंदा शेर
कविता की पाठशाला
नवगीत की पाठशाला
नवगीत संग्रह और समीक्षा
लोक संस्कृति
हिंदी की सौ सर्वश्रेष्ठ प्रेम कविताएँ
link
व्योम के पार
कविता की पाठशाला
Friday, December 29, 2023
इस ओर नागनाथ है
इस ओर नागनाथ है उस ओर साँपनाथ,
इसको जिताइए कभी उसको जिताइए।
-हरेराम समीप
आप उसके
आप उसके हौसले की दाद दें,
वो, जो सच कहने से घबराता नहीं।
-सुरेश सपन
किसी पर तुम करो
किसी पर तुम करो एहसां तो उसको याद मत रखना,
कोई एहसान कर जाये तो उसको भूल मत जाना।
-सुरेश सपन
कौन कहता है
कौन कहता है सफर में हम अकेले रह गए,
साथ हैं अब भी हमारे, क़ाफ़िले उम्मीद के।
-कमलेश भट्ट कमल
हर आँसू की
हर आँसू की अपनी क़ीमत होती है,
छोटी-छोटी बात पे रोना ठीक नहीं।
-पवन कुमार
वक़्त मुश्किल हो
वक़्त मुश्किल हो तो ये सोच के चुप रहता हूँ,
कुछ ही लम्हों में ये लम्हे भी पुराने होंगे।
-पवन कुमार
लहरों को भेजता है
लहरों को भेजता है तकाज़े के वास्ते,
साहिल है क़र्ज़दार समंदर मुनीम है।
-पवन कुमार
मेरे मुँह पर मेरे जैसी
मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी,
रंग बदलती इस दुनिया में सब कुछ है किरदार नहीं।
-पवन कुमार
मज़हब, दौलत
मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, ग़ैरत, खुद्दारी,
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए।
-पवन कुमार
बेहतर कल की
बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर,
अच्छे ख़ासे आज को खोना ठीक नहीं।
-पवन कुमार
बेतरतीब-सा घर
बेतरतीब-सा घर ही अच्छा लगता है,
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया।
-पवन कुमार
फ़ेहरिस्त में तो
फ़ेहरिस्त में तो नाम बहुत दर्ज हैं मगर,
जो गर्दिशों में साथ रहे वो नदीम है।
-पवन कुमार
ज़रूरत आदमी को
ज़रूरत आदमी को, आदमी रहने नहीं देती,
मगर सब, इस हक़ीक़त से, हमेशा मुँह छुपाते हैं।
-पवन कुमार
किसी मुश्किल में
किसी मुश्किल में वो ताक़त कहाँ जो रास्ता रोके,
मैं जब घर से निकलता हूँ तो माँ टीका लगाती है।
-पवन कुमार
नज़दीकी अक्सर
नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती है,
सोच-समझ कर घुलना-मिलना, अपने रिश्ते-दारों में।
-आलोक श्रीवास्तव
चहकते घर
चहकते घर, महकते खेत और वो गाँव की गलियाँ,
जिन्हें हम छोड़ आए, उन सभी को जीते रहते हैं।
-आलोक श्रीवास्तव
भीतर से ख़ालिस
भीतर से ख़ालिस जज़्बाती और ऊपर से ठेठ-पिता,
अलग, अनूठा, अनबूझा-सा इक तेवर थे बाबू जी।
-आलोक श्रीवास्तव
घर में झीने-रिश्ते मैं ने
घर में झीने-रिश्ते मैं ने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्माँ।
-आलोक श्रीवास्तव
तुम सोच रहे हो बस
तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।
-आलोक श्रीवास्तव
ऐसी-वैसी बातों से तो
ऐसी-वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहो,
या फिर ऐसी बात करो जो खामोशी से अच्छी हो।
-नवाज़ देवबंदी
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)