Friday, December 29, 2023

इस ओर नागनाथ है

इस ओर नागनाथ है उस ओर साँपनाथ, 
इसको जिताइए कभी उसको जिताइए।
 
-हरेराम समीप

आप उसके

आप उसके हौसले की दाद दें, 
वो, जो सच कहने से घबराता नहीं। 

-सुरेश सपन

किसी पर तुम करो

किसी पर तुम करो एहसां तो उसको याद मत रखना, 
कोई एहसान कर जाये तो उसको भूल मत जाना। 

                 -सुरेश सपन

कौन कहता है

कौन कहता है सफर में हम अकेले रह गए, 
साथ हैं अब भी हमारे, क़ाफ़िले उम्मीद के।

            -कमलेश भट्ट कमल

हर आँसू की

हर आँसू की अपनी क़ीमत होती है, 
छोटी-छोटी बात पे रोना ठीक नहीं।
 
-पवन कुमार

वक़्त मुश्किल हो

वक़्त मुश्किल हो तो ये सोच के चुप रहता हूँ, 
कुछ ही लम्हों में ये लम्हे भी पुराने होंगे। 

   -पवन कुमार

लहरों को भेजता है

लहरों को भेजता है तकाज़े के वास्ते, 
साहिल है क़र्ज़दार समंदर मुनीम है। 

-पवन कुमार

मेरे मुँह पर मेरे जैसी

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी, 
रंग बदलती इस दुनिया में सब कुछ है किरदार नहीं। 

-पवन कुमार

मज़हब, दौलत

मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, ग़ैरत, खुद्दारी, 
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए।

-पवन कुमार

बेहतर कल की

बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर, 
अच्छे ख़ासे आज को खोना ठीक नहीं। 

-पवन कुमार

बेतरतीब-सा घर

बेतरतीब-सा घर ही अच्छा लगता है, 
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया। 

-पवन कुमार

फ़ेहरिस्त में तो

फ़ेहरिस्त में तो नाम बहुत दर्ज हैं मगर, 
जो गर्दिशों में साथ रहे वो नदीम है। 

               -पवन कुमार

ज़रूरत आदमी को

ज़रूरत आदमी को, आदमी रहने नहीं देती, 
मगर सब, इस हक़ीक़त से, हमेशा मुँह छुपाते हैं।
 
-पवन कुमार

किसी मुश्किल में

किसी मुश्किल में वो ताक़त कहाँ जो रास्ता रोके, 
मैं जब घर से निकलता हूँ तो माँ टीका लगाती है। 

-पवन कुमार

नज़दीकी अक्सर

नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती है,
सोच-समझ कर घुलना-मिलना, अपने रिश्ते-दारों में।

-आलोक श्रीवास्तव

चहकते घर

चहकते घर, महकते खेत और वो गाँव की गलियाँ,
जिन्हें हम छोड़ आए, उन सभी को जीते रहते हैं।

-आलोक श्रीवास्तव 

भीतर से ख़ालिस

भीतर से ख़ालिस जज़्बाती और ऊपर से ठेठ-पिता,
अलग, अनूठा, अनबूझा-सा इक तेवर थे बाबू जी।

-आलोक श्रीवास्तव

घर में झीने-रिश्ते मैं ने

घर में झीने-रिश्ते मैं ने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्माँ।

-आलोक श्रीवास्तव

तुम सोच रहे हो बस

तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।

-आलोक श्रीवास्तव

ऐसी-वैसी बातों से तो

ऐसी-वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहो,
या फिर ऐसी बात करो जो खामोशी से अच्छी हो।

                 -नवाज़ देवबंदी