Monday, January 01, 2024

पास आकर

पास आकर एक सागर से नदी ने यह कहा
डूबने दे मुझको खुद में, थाह देखेंगे तेरी

-रमा सिंह

अब उसी के वास्ते

अब उसी के वास्ते घर में कोई कमरा नहीं
वो, जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया

-मानोशी चटर्जी

हवा आने दो ताज़ा

हवा आने दो ताज़ा, खोल दो सब खिड़कियाँ घर की
हवा पे सबका हक है, यों हवा को रोकना कैसा

-कृष्ण शलभ

कहीं से बीज इमली के

कहीं से बीज इमली के, कहीं से पर उठा लाई
ये बच्ची है बहुत खुश, एक दुनिया, घर उठा लाई

-कृष्ण शलभ

कुछ धूप आज छीनें

कुछ धूप आज छीनें बढ़कर इन्हीं से आओ
मुट्ठी में इनकी सूरज सदियों से बस रहा है

-डॅा. अनिल गहलौत

मेले में ले सके

मेले में ले सके न कुछ भी भाव पुछकर
हर बार अण्टियाँ टटोलते पिरे हैं हम

-डॅा. अनिल गहलौत

Sunday, December 31, 2023

वो चीख़ उभरी

वो चीख़ उभरी बड़ी देर गूँजी डूब गई 
हर एक सुनता था लेकिन कोई हिला भी नहीं 

-जावेद अख़्तर

बुलंदी पर उन्हें

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता 

    -जावेद अख़्तर

दिल्ली कहाँ गईं

दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें 
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं 

-जाँ निसार अख़्तर

फ़ुर्सत-ए-कार

फ़ुर्सत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारो
ये न सोचो की अभी उम्र पड़ी है यारो 
-जाँ निसार अख़्तर

पटे न जो तेरी

पटे न जो तेरी सूरज से, चाँद-तारों से 
तो अपने हाथ में जुगनू की रोशनी रखना

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

लिखा है जो मुक़द्दर में

लिखा है जो मुक़द्दर में, मिटाना उसको नामुमकिन
इसी भ्रम में सभी कुछ झेलना अच्छा नहीं लगता

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

हम तो बचपन से

हम तो बचपन से अँधेरों की पनाहों में रहे हैं 
सिर्फ़ महलों तक रहे हैं, बस, बसेरे रोशनी के

                -विनोद भृंग

हवा का रुख

हवा का रुख बदलने की, अगर ताक़त नहीं हममें 
किसी तिनके-सा उस रुख़ में, ज़रूरी तो नहीं बहना

-सुरेन्द्र सिंघल

समय तो रेत है

समय तो रेत है इस रेत को रुकना नहीं आता,
रखो मुट्ठी में चाहे जितना कसकर, हमने देखा है।

                -कमलेश भट्ट कमल

हमें झूठों की आदत

हमें झूठों की आदत पड़ गयी कुछ इस तरह लोगो
कोई सच्चा दिखाई दे तो अब हम चौंक जाते हैं!

                    -कमलेश भट्ट कमल

रह नहीं सकते

रह नहीं सकते उड़ानों में ही ज़्यादा देर तक,
आसमाँ वाले परिन्दों को धरा भी चाहिए। 
  
                    -कमलेश भट्ट कमल 

वो केवल हुक्म देता है

वो केवल हुक्म देता है, सिपहसालार जो ठहरा 
मैं उसकी जंग लड़ता हूँ, मैं बस हथियार जो ठहरा

      -सुरेन्द्र सिंघल

जिसे देखो वही

जिसे देखो वही पाले है भ्रम 'दुष्यन्त' होने का
भले उसको ग़ज़ल की एबीसीडी भी नहीं आती!

                -कमलेश भट्ट कमल

जब ये लगता है

जब ये लगता है, हक़ीक़त न सुनेगा कोई
अपनी फ़रियाद फ़सानों में सुना देते हैं

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'