Wednesday, July 31, 2024

हंगामा है क्यूँ बरपा

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है

                -अकबर इलाहाबादी

मस्जिद तो बना दी

मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका

            -अल्लामा इक़बाल

हो न मायूस

हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे

        -बिस्मिल अज़ीमाबादी

साया है कम

साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का 
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ 

            -कैफ़ भोपाली

फ़रिश्ते से बढ़ कर है

फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना 
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा 

            -अल्ताफ़ हुसैन हाली

बस्ती में अपनी

बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए 
इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए 

                -कैफ़ी आज़मी

कभी कभी तो

कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें 
उदास होने का कोई सबब नहीं होता 

                -बशीर बद्र

खींचो न कमानों को

खींचो न कमानों को न तलवार निकालो 
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो 

            -अकबर इलाहाबादी

Tuesday, July 30, 2024

वो झूट बोल रह था

वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से

मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता

         -वसीम बरेलवी

Sunday, July 28, 2024

वही फिर मुझे

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

     -ख़ुमार बाराबंकवी     

दूसरों पर अगर

दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए

         -ख़ुमार बाराबंकवी

Wednesday, July 24, 2024

लालच के

लालच के अंधों को भाता कब सुख-चैन ज़माने का,
अमन-चैन गर टिकता कुछ दिन, आ जाते भड़काने लोग।

-वीरेन्द्र कुमार शेखर

Thursday, June 27, 2024

वो अच्छा पति

वो अच्छा पति, भला इंसां, बड़ा शायर, मुझे लगता 
सियासत के झमेलों में पड़ा होने से पहले था

          -वीरेन्द्र कुमार शेखर

Saturday, June 22, 2024

सियासत में

सियासत में बातों के मतलब कहाँ? 
ये झाँसे हैं झाँसों में आया न कर

            -वीरेन्द्र कुमार शेखर

भूलना चाहा

भूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक
    
                -नवाज़ देवबंदी

Monday, June 17, 2024

आई थी

आई थी जिस हिसाब से आँधी
इस को सोचो तो पेड़ कम टूटे
          -सूर्यभानु गुप्त

Wednesday, June 12, 2024

उसके हाथ में

उस के हाथ में ग़ुब्बारे थे फिर भी बच्चा गुम-सुम था
वो ग़ुब्बारे बेच रहा हो ऐसा भी हो सकता है
      -सैयद सरोश आसिफ़

Thursday, May 30, 2024

उसमें चूल्हे तो

उसमें चूल्हे तो कई जलते हैं 
एक घर होने से क्‍या होता है। 
        -डॉ. अख्तर नज़्मी 

खुद को

खुद को सूरज का तरफ़दार बनाने के लिए 
लोग निकले हैं चरागों को बुझाने के लिए। 
          -अकील नोमानी 

Tuesday, April 02, 2024

इस दुनिया में

इस दुनिया में मेरे भाई नफरत है मक्कारी है
ढूँढ रहा हूँ बस्ती-बस्ती मैं थोड़ा-सा अपनापन

                    -श्याम 'बेबस'


(आजकल, जून 1991)