Sunday, December 31, 2023

करोड़ों देवता हैं

करोड़ों देवता हैं, उनके लाखों-लाख मंदिर हैं
मुसीबत आए तो जाने कहाँ भगवान सोता है!

                -कमलेश भट्ट कमल

कभी कुछ देर बैठो

कभी कुछ देर बैठो पास तो ख़ुद जान जाओगे, 
स्वयं में कितनी बेचैनी कोई सागर समेटे है!

      -कमलेश भट्ट कमल

पहाड़ों ने उगाए हैं

पहाड़ों ने उगाए हैं करोड़ों पेड़ छाती पर, 
करोड़ों पेड़ हैं, जो पर्वतों का ध्यान रखते हैं।
        
                -कमलेश भट्ट कमल 

परिन्दों की

परिन्दों की ज़रा नाज़ुक-सी काया पर न जाना
छुपी है आसमाँ की दास्ताँ पंखों के पीछे
   
            -कमलेश भट्ट कमल

पुराने गिर गये पत्ते

पुराने गिर गये पत्ते तो आएँगे नये इक दिन
कि पतझड़ ख़त्म होता है किसी मधुमास में जाकर

                -कमलेश भट्ट कमल

न जाने बाँटता है

न जाने बाँटता है कौन सुख-दुख की ये सौगातें
उजाले मुट्ठियों में कैद, तम के पाँव पसरे हैं

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

देवता भी हो

देवता भी हो अगर मग़रूर, उसके सामने 
सर भले सिजदे में हो, पर बंदगी मत कीजिये

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

तरक्की के अजब

तरक्की के अजब इस दौर से हम लोग गुज़रे हैं
बहुत सँवरे, सजे बाज़ार हैं, घर-बार बिखरे हैं

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

तूने ली कभी

तूने ली कभी न मेरी ख़बर, मैं न तुझसे था कभी बेख़बर
न तुझे ही उसका मलाल है, न मुझे ही इसका मलाल है

     -ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

तोड़ डालेंगी

तोड़ डालेंगी तुझे ये चुप्पियाँ खामोशियाँ
पेड़-पौधों, पत्थरों से ही सही, संवाद कर!

                -कमलेश भट्ट कमल

तन्हा तन्हा रो लेने से

तन्हा तन्हा रो लेने से कुछ न बनेगा कुछ न बना
मिल-जुल कर आवाज़ उठाओ पर्वत भी हिल जाएगा

                            -नाज़िश प्रतापगढ़ी

ले दे के अपने पास

ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम

                    -साहिर लुधियानवी

मैं सावधान हूँ

मैं सावधान हूँ तुझसे, तू मुझसे चौकन्ना
तनिक तो सोच कि ये भी है कोई रिश्ता क्या 

-सुरेन्द्र सिंघल  

मैं इतनी बात तो

मैं इतनी बात तो दावे के साथ कहता हूँ
किसी भी राम से, रावण बड़ा नहीं होता

          -ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

मेरी कोशिश है

मेरी कोशिश है कि मुझको छोड़कर जायें न खुशियाँ
और ग़म कहता कि ऐ इंसान, क्या तू बावला है

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

मुँह माँगी क़ीमत पर

मुँह माँगी क़ीमत पर फिर से झूठ बिक गया
सच्चाई को लेकर कितना मोल-भाव है?

                -कमलेश भट्ट कमल

बढ़ने ही नहीं देता

बढ़ने ही नहीं देता आगे, क़दमों से लिपटा रहता है 
दिल्ली में आया ही था क्यों, मैं साथ अपना क़स्बा लेकर

-सुरेन्द्र सिंघल

जुल्म के गाढ़े

जुल्म के गाढ़े कुहासे की सतह को चीरकर
हम निकल ही जायेंगे दिन के उजालों की तरह

                 -नचिकेता

मेले से बुंदे,

मेले से बुंदे, बाल-पिनें कुछ नहीं लिए
मेरी ग़यूर बेटी ने चादर ख़रीद ली 

-कैफ़ी संभली

दीवारों को छोटा

दीवारों को छोटा करना मुश्किल है 
अपने क़द को ऊँचा कर के देखा जाए

-भारत भूषण पंत