Thursday, January 04, 2024

दुकानों में खिलौने

दुकानों में खिलौने देखकर मुँह फेर लेते हैं
किसी मुफ़लिस के बच्चों की कोई देखे ये लाचारी

            -कुँअर बेचैन

तुम तो कहते थे

तुम तो कहते थे अँधेरे हैं मुक़द्दर उसका
उसने सूरज को हथेली पर उठा रक्खा है   

           -विकास शर्मा 'राज़'

नमक लिए हुए

नमक लिए हुए फिरते हैं लोग मुट्ठी में
तू अपने ज़ख़्म ज़माने को मत दिखाया कर
            
                -मधु 'मधुमन

बच्चों के सच्चे

बच्चों के सच्चे ज़ेह्नों में झूठी बातें मत डालो
काँटों की सुहबत में रहकर फूल नुकीला हो जाता है

          -शकील आज़मी

मुझसे मिलने के लिए

मुझसे मिलने के लिए आए तो परदे में रहे
दर्द से कहना कि मेरे घर में सलीके से रहना

          -अशोक साहिल

मैं अपने घर का

मैं अपने घर का अकेला कमाने वाला हूँ
मुझे तो साँस भी आहिस्तगी से लेना है

        -शकील जमानी

मातहत होने का

मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ

          -मनोज अबोध

मज़ा आया तो

मज़ा आया तो फिर इतना मज़ा आया मुसीबत में
ग़मों के साथ अपनेपन का इक रिश्ता निकल आया

                -कृष्ण सुकुमार

मेरी मजबूरियाँ

मेरी मजबूरियाँ मेरे उसूलों से हैं टकरातीं
जहाँ पर सर उठाना था, वहीं पर सर झुकाता हूँ

            -कृष्ण सुकुमार

मुझे यह भी मिले

मुझे यह भी मिले, वो भी मिले, रिश्ता भले टूटे
यही चाहें कोई रिश्ता निकट का छोड़ जाती हैं

                -कुँअर बेचैन

मैं कितने ही

मैं कितने ही बड़े लोगों की नीचाई से वाकिफ़ हूँ
बहुत मुश्किल है दुनिया में बड़े बनकर, बड़े रहना

            -कुँअर बेचैन

ख़ुद हवा आयी है

ख़ुद हवा आयी है चलकर तो चलो बुझ जायें
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बेचारी की

             -अक़ील नोमानी

कौन सी धूप

कौन सी धूप इस मायानगर में दोस्तो
हम तो छोटे हो गए परछाईयाँ बढ़ती गईं

        -रामदरश मिश्र

घर का बँटवारा हुआ

घर का बँटवारा हुआ तो घर का आँगन रो पड़ा
दिल भी कितने बँट रहे थे घर के बँटवारे के साथ

            -कुँअर बेचैन

घड़ा मिट्टी का

घड़ा मिट्टी का पत्तों की चटाई
बुजुर्गों की निशानी है अभी तक

      -कुमार नयन

जो ऊँचे चढ़ के

जो ऊँचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे दिखते हैं हरदम
प्रफुल्लित वृक्ष की यह भूमि कुसुमागार करते हैं

          -जयशंकर प्रसाद

गोलियाँ कोई

गोलियाँ कोई निशाना बाँधकर दागी थीं क्या
खुद निशाने पै आ पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें

              -गिरीश तिवारी 'गिर्दा'

गुब्बारे से बदन

गुब्बारे से बदन पे वो मग़रूर था बहुत
पिचका तो साँस-साँस से आने लगी हवा

         -फ़िराक़ जलालपुरी

गुलाम बन गया है

गुलाम बन गया है हर कोई मशीनों का
हमें तो डर है कि अब आदमी की खैर नहीं

    -मधु 'मधुमन'

चाँद क्या सजता

चाँद क्या सजता सँवरता है कभी
अच्छी शै अच्छी नज़र आयेगी खुद

            -सरदार आसिफ़