ग़ज़लों के चुनिंदा शेर
कविता की पाठशाला
नवगीत की पाठशाला
नवगीत संग्रह और समीक्षा
लोक संस्कृति
हिंदी की सौ सर्वश्रेष्ठ प्रेम कविताएँ
link
व्योम के पार
कविता की पाठशाला
Thursday, January 04, 2024
दुकानों में खिलौने
दुकानों में खिलौने देखकर मुँह फेर लेते हैं
किसी मुफ़लिस के बच्चों की कोई देखे ये लाचारी
-कुँअर बेचैन
तुम तो कहते थे
तुम तो कहते थे अँधेरे हैं मुक़द्दर उसका
उसने सूरज को हथेली पर उठा रक्खा है
-विकास शर्मा 'राज़'
नमक लिए हुए
नमक लिए हुए फिरते हैं लोग मुट्ठी में
तू अपने ज़ख़्म ज़माने को मत दिखाया कर
-मधु 'मधुमन
बच्चों के सच्चे
बच्चों के सच्चे ज़ेह्नों में झूठी बातें मत डालो
काँटों की सुहबत में रहकर फूल नुकीला हो जाता है
-शकील आज़मी
मुझसे मिलने के लिए
मुझसे मिलने के लिए आए तो परदे में रहे
दर्द से कहना कि मेरे घर में सलीके से रहना
-अशोक साहिल
मैं अपने घर का
मैं अपने घर का अकेला कमाने वाला हूँ
मुझे तो साँस भी आहिस्तगी से लेना है
-शकील जमानी
मातहत होने का
मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ
-मनोज अबोध
मज़ा आया तो
मज़ा आया तो फिर इतना मज़ा आया मुसीबत में
ग़मों के साथ अपनेपन का इक रिश्ता निकल आया
-कृष्ण सुकुमार
मेरी मजबूरियाँ
मेरी मजबूरियाँ मेरे उसूलों से हैं टकरातीं
जहाँ पर सर उठाना था, वहीं पर सर झुकाता हूँ
-कृष्ण सुकुमार
मुझे यह भी मिले
मुझे यह भी मिले, वो भी मिले, रिश्ता भले टूटे
यही चाहें कोई रिश्ता निकट का छोड़ जाती हैं
-कुँअर बेचैन
मैं कितने ही
मैं कितने ही बड़े लोगों की नीचाई से वाकिफ़ हूँ
बहुत मुश्किल है दुनिया में बड़े बनकर, बड़े रहना
-कुँअर बेचैन
ख़ुद हवा आयी है
ख़ुद हवा आयी है चलकर तो चलो बुझ जायें
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बेचारी की
-अक़ील नोमानी
कौन सी धूप
कौन सी धूप इस मायानगर में दोस्तो
हम तो छोटे हो गए परछाईयाँ बढ़ती गईं
-रामदरश मिश्र
घर का बँटवारा हुआ
घर का बँटवारा हुआ तो घर का आँगन रो पड़ा
दिल भी कितने बँट रहे थे घर के बँटवारे के साथ
-कुँअर बेचैन
घड़ा मिट्टी का
घड़ा मिट्टी का पत्तों की चटाई
बुजुर्गों की निशानी है अभी तक
-कुमार नयन
जो ऊँचे चढ़ के
जो ऊँचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे दिखते हैं हरदम
प्रफुल्लित वृक्ष की यह भूमि कुसुमागार करते हैं
-जयशंकर प्रसाद
गोलियाँ कोई
गोलियाँ कोई निशाना बाँधकर दागी थीं क्या
खुद निशाने पै आ पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें
-गिरीश तिवारी 'गिर्दा'
गुब्बारे से बदन
गुब्बारे से बदन पे वो मग़रूर था बहुत
पिचका तो साँस-साँस से आने लगी हवा
-फ़िराक़ जलालपुरी
गुलाम बन गया है
गुलाम बन गया है हर कोई मशीनों का
हमें तो डर है कि अब आदमी की खैर नहीं
-मधु 'मधुमन'
चाँद क्या सजता
चाँद क्या सजता सँवरता है कभी
अच्छी शै अच्छी नज़र आयेगी खुद
-सरदार आसिफ़
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)