Monday, January 15, 2024

हमने माना कि

हमने माना कि महका के घर रख दिया
कितने फूलों का सिर काट कर रख दिया

    -उदय प्रताप सिंह

Thursday, January 11, 2024

सवार हमने

सवार हमने बदल डाले सैकड़ों लेकिन
हमारी पीठ पे सदियों की जीन बाकी है

                 -गणेश गंभीर

मैंने हर रिश्ते में

मैंने हर रिश्ते में खाली लाभ तलाशा
मुझको अपने घर ही में बाज़ार मिला है

                    -लक्ष्मण

जो भाई से

जो भाई से ख़फा होकर के आँगन बाँट लेता है
वो माँ की आँख में उतरी नमी को भूल जाता है

    -रामबाबू रस्तोगी

क्या नहीं मिल रहा

क्या नहीं मिल रहा यहां आजकल
बिक रहा है सरे आम ईमान तक

           -कृष्णानन्द चौबे

जिक्र जिसका

जिक्र जिसका न किताबों में न चर्चाओं में
जाने किस वक्त की तहजीब का खंडहर हूँ मैं

               -कृष्णानन्द चौबे

जब तक वे

जब तक वे समंदर में समाते नहीं तब तक
दरिया तो किनारों से, किनारा नहीं करते

                  -कृष्णानन्द चौबे


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[5 अगस्त 1931, कायमगंज, फर्रुखाबाद

अपनी साज़िश में

अपनी साज़िश में हवाएँ हो गयीं फिर कामयाब
रह गयी फिर बादलों के बीच फँस कर रोशनी

                   -बुद्धिसेन शर्मा

घर की देहरी

घर की देहरी छोड़कर जाने को जी करता नहीं
क्या कहूँ घर की ज़रूरत ले गई बाहर मुझे

          -कैलाश गौतम

हो गए जब

हो गए जब बंद सारे रास्ते मेरे लिए
खुल गया कोई नया दरवाज़ा मेरे सामने!

    -योगेन्द्रदत्त शर्मा

हाँ, गुज़र ही जाएगा

हाँ, गुज़र ही जाएगा दौर ये, नहीं दौर कोई भी मुस्तकिल
यही आदमी का यक़ीन है, यही वक़्त का भी बयान है !

                   -योगेन्द्रदत्त शर्मा

शोले नफ़रत के

शोले नफ़रत के, ये बँटवारे, ये सहमी बस्ती
सब सियासत के इशारों का पता देते हैं

                    -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

वो हुकूमत को

वो हुकूमत को नज़र आते हैं, दुश्मन की तरह
जो भी 'सिस्टम' में दरारों का पता देते हैं

                    -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

पत्थरों के बीच

पत्थरों के बीच थोड़ी जिंदगी भी चाहिये
देवताओं के शहर में आदमी भी चाहिये

      -हबीब कैफ़ी

जो सियासत कहे

जो सियासत कहे उस पे कैसे चलें
आदमी हैं मशीनों के पुर्जे नहीं

      -विनय मिश्र

किसी मरीज़ से

किसी मरीज़ से कहना कि आप अच्छे हैं
ये बात कहने का मतलब दवा भी होता है

    -हबीब कैफ़ी

कभी जो गालियाँ

कभी जो गालियाँ दे माँ तो ये समझ लेना
कि उसकी गाली का मतलब दुआ भी होता है

      -हबीब कैफ़ी

एक टुकड़ा सच

एक टुकड़ा सच का जाने सोच में कब आ गया
उम्र भर मैं जिंदगी को बेमज़ा लिखता रहा

      -अश्वघोष

Wednesday, January 10, 2024

वक़्त के साथ

वक़्त के साथ बदल जाता मैं लेकिन हर पल 
मेरा माज़ी मुझे आईना दिखाता ही रहा

-हैरत फ़र्रुख़ाबादी

दोस्तो इस दौर

दोस्तो इस दौर की सब से बड़ी ख़ूबी है ये 
आदमी पत्थर का दिल पत्थर का घर पत्थर का है 

-हैरत फ़र्रुख़ाबादी



[ हैरत फ़र्रुखाबादी, मूल नाम- ज्योति प्रसाद मिश्रा,  08 फरवरी 1930]