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कविता की पाठशाला
Tuesday, January 16, 2024
न जाने ढूँढ़ता
न जाने ढूँढ़ता रहता है क्या अक्सर किताबों में
मेरा दस साल का बच्चा शरारत क्यों नहीं करता
-अशोक रावत
न जाने कितनी
न जाने कितनी सुरंगें निकल गईं उससे
खड़ा पहाड़ भी बस आँख का ही धोखा था
-द्विजेन्द्र द्विज
मैं तो तस्वीर
मैं तो तस्वीर हूँ आँसू की, मुझे क्या मालूम
कैद रहते हैं कई दर्द के मंज़र मुझमें
-गोविन्द गुलशन
मैं भी दरिया हूँ
मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मंज़िल नहीं
मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जायेगा
-राजगोपाल सिंह
मैं रहा चुप
मैं रहा चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक
-कुँअर बेचैन
मुझको जग का
मुझको जग का कच्चा चिट्ठा भी लिखना है, मैं कैसे
ख़ूद को धोखा दूँ, मज़हब की धुन में पागल हो जाऊँ
-अशोक रावत
पहले भाप बनूँ
पहले भाप बनूँ उड़ जाऊँ, बूँद बनूँ फिर पानी की
फिर गंगाजी में मिल जाऊँ और गंगाजल हो जाऊँ
-अशोक रावत
पूरे गुलशन का
पूरे गुलशन का चलन, चाहे बिगड़ जाए मगर
बदचलन होने से, खुशबू तो बचा ली जाए
-लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
रेत में तब्दील
रेत में तब्दील चट्टानों को होना ही पड़ा
जाने कितना हौसला पुर-जोश सरिताओं में था
-एहतराम इस्लाम
याद बरबस
याद बरबस आ गयी 'माँ' मैंने देखा जब कभी
मोमबत्ती को पिघलकर रोशनी देते हुए
-लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
ढूँढ़ रहे हो
ढूँढ़ रहे हो गाँव-गाँव में जाकर किस सच्चाई को
सच तो सिर्फ वही होता है, जो दिल्ली दरबार कहे
-बालस्वरूप राही
सीधे-सच्चे लोगों के
सीधे-सच्चे लोगों के दम पर ही दुनिया चलती है
हम कैसे इस बात को मानें, कहने को संसार कहे
-बालस्वरूप राही
सरफिरे लोग
सरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
-मुनव्वर राना
मुहब्बत करने
मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
-मुनव्वर राना
तुम्हारे शहर में
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिलकर उठाते हैं
-मुनव्वर राना
तुम्हारी महफ़िलों में
तुम्हारी महफ़िलों में हम बड़े-बूढ़े जरूरी हैं
अगर हम ही नहीं होंगे तो पगड़ी कौन बाँधेगा
-मुनव्वर राना
सैर कर दुनिया
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
-ख़्वाजा मीर दर्द
नए कमरों में अब
नए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
हमीं थामे रहे गिरती हुई दीवार को वरना,
सलीके से बुजुर्गो को निशानी कौन रखता है।
-मुनव्वर राना
Monday, January 15, 2024
ज़माने के ख़ुदा
ज़माने के ख़ुदा या नाख़ुदा कोशिश भले कर लें
गुनहगारों की कश्ती है, नदी में डूब जायेगी
-अंसार कम्बरी
घर तो है
घर तो है लेकिन घर में अब आँगन नहीं रहा
रिश्ते हैं रिश्तों में पर अपनापन नहीं रहा
-चन्द्रभान भारद्वाज
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