Tuesday, April 02, 2024

मैं भी इससे जूझ रहा हूँ

मैं भी इससे जूझ रहा हूँ साहस की तलवार लिए
कटते-कटते कट जाएगा ये सारे का सारा दिन

                        -राजेन्द्र व्यथित
                    
(आजकल, जून 1991)

ईंटें उनके सर के नीचे

ईंटें उनके सर के नीचे ईंटें उनके हाथों पर
ऊँचे महल बनाने वाले सोते हैं फुटपाथों पर

-कृश्न मोहन
(आजकल, जून 1991)

अब तो पूरा जिस्म

अब तो पूरा जिस्म ही कुछ इस तरह बीमार है
पीठ बोझा हो गई है पेट पल्लेदार है
    -कुँअर बेचैन

(आजकल, जून 1991)

खिड़कियाँ खोलो

खिड़कियाँ खोलो जरा ताजी हवा आने तो दो
आदमी को आदमी की गंध भर पाने तो दो 

         -कमलेश भट्ट कमल


(आजकल, अक्तूबर 1982) 

मंजिल है बहुत दूर

मंजिल है बहुत दूर बहुत दूर ये न देख
ये देख कि तय तुझसे कितना फासला हुआ

            -सत्यपाल सक्सेना

(आजकल, अक्तूबर 1983) 

सब उसकी बात

सब उसकी बात निर्विरोेध मान लेते हैं
मानों वो आदमी न हुआ फैसला हुआ

           -सत्यपाल सक्सेना


(आजकल, अक्तूबर 1983) 

खेत में गूँजते

खेत में गूँजते फागुनी गीत सब
किसने छीने, कहाँ खो गए गाँव में
 
       -डा० गिरिराज शरण अग्रवाल



(आजकल, जुलाई 1983 ) 

Friday, March 08, 2024

माना कि इस

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके 
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम 

-साहिर लुधियानवी

Monday, March 04, 2024

आने वाली नस्लें

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-अस्रो
जब ये खयाल आयेगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था 
              
                         -फ़िराक़ गोरखपुरी

सरज़मीने-हिन्द पर

सरज़मीने-हिन्द पर अक़वामे-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़ले बसते गये हिन्दोस्ताँ बनता गया।
               
                         -फ़िराक़ गोरखपुरी

कहीं वो आके

कहीं वो आके मिटा दें न इन्तेज़ार का लुत्फ़
कहीं कुबूल न हो जाय इल्तेजा मेरी। 
                  -फ़िराक़ गोरखपुरी

Thursday, February 15, 2024

बस-कि दुश्वार

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इंसाँ होना

                -मिर्ज़ा ग़ालिब

है शैख़ ओ

है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा
ये जानवर न चर लें सब गुल्सिताँ हमारा

            -शौक़ बहराइची

हाँ उन्हीं लोगों से

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं

            -राही मासूम रज़ा

वो गाँव का इक

वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे तो लोग समझे

                -अहमद सलमान

वही हालात

वही हालात हैं फ़क़ीरों के
दिन फिरे हैं फ़क़त वज़ीरों के

            -हबीब जालिब

यूँ न मुरझा

यूँ न मुरझा कि मुझे ख़ुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम में तेरे साथ खिला हूँ मैं भी

                -मज़हर इमाम

ये रंग-ए-बहार

ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्यूँ फ़िक्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तिरी सूनी न हुई कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए

                -असरार-उल-हक़ मजाज़

ये बोला दिल्ली

ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता
कहाँ से सीखी अदा तू ने दुम दबाने की

                -साग़र ख़य्यामी

याद के चाँद

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चाँदनी जगमगाती रही रात भर

            -मख़दूम मुहिउद्दीन