Thursday, December 28, 2023

आज तो हम को

आज तो हम को पागल कह लो, पत्थर फेंको तंज़ करो,
इश्क़ की बाज़ी खेल नहीं है, खेलोगे तो हारोगे।

-इब्न-ए-इंशा

अब तुझ से किस मुँह से

अब तुझ से किस मुँह से कह दें सात समुंदर पार न जा,
बीच की इक दीवार भी हम तो फाँद न पाए, ढा न सके।

-इब्न-ए-इंशा

उन का ये कहना

उन का ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है,
सर-आँखों पर सूरज ही को घूमने दो ख़ामोश रहो।

-इब्न-ए-इंशा

फिर सड़क पर

फिर सड़क पर बन रहे हैं कितने शीशे के मकाँ,
देखिए फिर झोंपड़ों से कब कोई पत्थर चले।

-बदनाम नज़र 

गिरती दीवारों पे

गिरती दीवारों पे कुछ परछाइयाँ रहने लगीं,
घर को वीराँ देख कर तन्हाइयाँ रहने लगीं।

-बदनाम नज़र 

उस ने अच्छा ही किया

उस ने अच्छा ही किया रिश्तों के धागे तोड़ कर,
मैं भी कुछ उकता गया था वो भी कुछ ऊबा सा था।

-बदनाम नज़र 

Wednesday, December 27, 2023

अब न अगले वलवले हैं

अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़,
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है।

            -बिस्मिल अज़ीमाबादी

हैं और भी दुनिया में

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे, 
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और।

                    -मिर्ज़ा ग़ालिब

कौन कहता है

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा,
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा।

-अहमद नदीम कासमी

वादे पे तुम न आए

वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए,
कहने को बात रह गई और दिन गुज़र गए।

            -जलील मानिकपुरी

सितारों से आगे

सितारों से आगे जहां और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं।

       -अल्लामा इक़बाल

बे-ख़ुदी में हम तो

बे-ख़ुदी में हम तो तेरा दर समझ कर झुक गए,
अब ख़ुदा मालूम काबा था कि वो बुत-ख़ाना था।

                -तालिब जयपुरी

तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत

तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत, हम अपने ग़म से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खालो न हम खाली।

             -जाफ़रअली हसरत


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* 1734- 1792  मीर तकी मीर के समकालीन.... (संदर्भ- रेख़्ता) 

हम तो अपने गाँव के

हम तो अपने गाँव के बरगद के साये में भी खुश थे,
ले गया हमको हमारे पाँव का चक्कर कहाँ तक।

       -उदयप्रताप सिंह

कौन ये ले रहा है

कौन ये ले रहा है अँगड़ाई, 
आसमानों को नींद आती है।

         -फ़िराक़ गोरखपुरी

बे-अदबी की बात

बे-अदबी की बात अदब से करते हैं,
कम-ज़र्फ़ों में किस हद तक मक्कारी है।

-पूनम यादव

चहचहाना रहे

आबोदाना रहे, रहे, न रहे
चहचहाना रहे, रहे, न रहे

हमने गुलशन की खैर माँगी है
आशियाना रहे, रहे, न रहे

        -बलवीर सिंह रंग

हद से बढ़ जाती है

हद से बढ़ जाती है जब आदमी की मजबूरी,
अमन पसंद बग़ावत की बात करते हैं।

-बलवीर सिंह रंग

खींच रखती है

खींच रखती है मिरे पाँव को दहलीज़ तलक,
कोई ज़ंजीर है इस घर की निगहबानी में।

-शाहिदा हसन

वो कहता था कि

वो कहता था कि ख़ुद को ख़ाक कहना छोड़ दो अब तुम,
किसी दिन देख लेना तुम शरारा बन ही जाओगी।

-शाहिदा लतीफ़