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Thursday, December 28, 2023
काले चेहरे
काले चेहरे काली ख़ुश्बू सब को हम ने देखा है,
अपनी आँखों से उन को शर्मिंदा हर इक बार किया।
-मीना कुमारी 'नाज़'
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* सुप्रसिद्ध सिनेतारिका 'मीना कुमारी' ( 1933 - 1972 )
बैठे हैं रास्ते में
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडर सजा कर,
शायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे।
-मीना कुमारी 'नाज़'
झूटे सिक्कों में भी
झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदे करना, काम है इन बंजारों का।
-इब्न-ए-इंशा
आज तो हम को
आज तो हम को पागल कह लो, पत्थर फेंको तंज़ करो,
इश्क़ की बाज़ी खेल नहीं है, खेलोगे तो हारोगे।
-इब्न-ए-इंशा
अब तुझ से किस मुँह से
अब तुझ से किस मुँह से कह दें सात समुंदर पार न जा,
बीच की इक दीवार भी हम तो फाँद न पाए, ढा न सके।
-इब्न-ए-इंशा
उन का ये कहना
उन का ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है,
सर-आँखों पर सूरज ही को घूमने दो ख़ामोश रहो।
-इब्न-ए-इंशा
फिर सड़क पर
फिर सड़क पर बन रहे हैं कितने शीशे के मकाँ,
देखिए फिर झोंपड़ों से कब कोई पत्थर चले।
-बदनाम नज़र
गिरती दीवारों पे
गिरती दीवारों पे कुछ परछाइयाँ रहने लगीं,
घर को वीराँ देख कर तन्हाइयाँ रहने लगीं।
-बदनाम नज़र
उस ने अच्छा ही किया
उस ने अच्छा ही किया रिश्तों के धागे तोड़ कर,
मैं भी कुछ उकता गया था वो भी कुछ ऊबा सा था।
-बदनाम नज़र
Wednesday, December 27, 2023
अब न अगले वलवले हैं
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़,
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है।
-बिस्मिल अज़ीमाबादी
हैं और भी दुनिया में
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और।
-मिर्ज़ा ग़ालिब
कौन कहता है
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा,
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा।
-अहमद नदीम कासमी
वादे पे तुम न आए
वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए,
कहने को बात रह गई और दिन गुज़र गए।
-जलील मानिकपुरी
सितारों से आगे
सितारों से आगे जहां और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं।
-अल्लामा इक़बाल
बे-ख़ुदी में हम तो
बे-ख़ुदी में हम तो तेरा दर समझ कर झुक गए,
अब ख़ुदा मालूम काबा था कि वो बुत-ख़ाना था।
-तालिब जयपुरी
तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत
तुम्हें गैरों से कब फ़ुरसत, हम अपने ग़म से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खालो न हम खाली।
-जाफ़रअली हसरत
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* 1734- 1792 मीर तकी मीर के समकालीन.... (संदर्भ- रेख़्ता)
हम तो अपने गाँव के
हम तो अपने गाँव के बरगद के साये में भी खुश थे,
ले गया हमको हमारे पाँव का चक्कर कहाँ तक।
-उदयप्रताप सिंह
कौन ये ले रहा है
कौन ये ले रहा है अँगड़ाई,
आसमानों को नींद आती है।
-फ़िराक़ गोरखपुरी
बे-अदबी की बात
बे-अदबी की बात अदब से करते हैं,
कम-ज़र्फ़ों में किस हद तक मक्कारी है।
-पूनम यादव
चहचहाना रहे
आबोदाना रहे, रहे, न रहे
चहचहाना रहे, रहे, न रहे
हमने गुलशन की खैर माँगी है
आशियाना रहे, रहे, न रहे
-बलवीर सिंह रंग
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