Saturday, January 06, 2024

हम तो अपने लिए

हम तो अपने लिए अपने ही जलाते हैं चराग़
चाँद-सूरज से उजाला नहीं माँगा करते

            -अख़्तर नज़्मी 

हवा नफ़रतों की

हवा नफ़रतों की चली तो थी लेकिन
मुहब्बत के अब भी दिये जल रहे हैं

             -अनवारे इस्लाम

हैं कंधे वही

हैं कंधे वही पालकी है वही 
तमाशा अभी सब वही का वही

           -डा० जगदीश व्योम

घरों दफ्तरों में

घरों दफ्तरों में  मठों मदरसों में
बताओ कहाँ अब सियासत नहीं है

       -आलोक यादव

क़लम का साथ

क़लम का साथ हमको मिल गया तो बच गए वरना
हमेशा पत्थरों से आइनों को तोलते रहते 

-अशोक रावत

इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का

इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फ़ैले तो ज़माना है

            -जिगर मुरादाबादी

Friday, January 05, 2024

उसकी याद आयी है

उसकी याद आयी है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

-राहत इन्दौरी

सर ढका हमने

सर ढका हमने अगर तो पाँव नंगे रह गए
अपने अरमानों की चादर उम्र भर छोटी रही

             -विजय कुमार सिंघल

यहाँ तक आते-आते

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

              -दुष्यन्त कुमार

दाने तक पहुँची

दाने तक पहुँची तो चिड़िया जिन्दा थी
जिन्दा रहने की कोशिश ने मार दिया

             -परवीन शाकिर

डूब गया था

डूब गया था दर्द के सागर में कल बनवासी सूरज
रात मगर अब तक आंगन में आस के दीप जलाये है

               -प्रेम अबरोहरवी

बाजों ने जब से

बाजों ने जब से जश्न मनाने की ठान ली
कोटर में कबूतर तभी से तंगहाल हैं

         -आसिफ रोहतासवी

मत चिरागों को

मत चिरागों को हवा दो बालियाँ जल जायेंगी
ये हवन वो है कि जिसमें उँगलियाँ जल जायेंगी

              -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

मेरी बस्ती के

मेरी बस्ती के सभी लोगों को जाने क्या हुआ
देखते रहते हैं सारे बोलता कोई नहीं 

         -माधव कौशिक

भूख पीड़ा बेवसी

भूख पीड़ा बेवसी बेरोजगारी मुफलिसी
मेरी पीढ़ी को विरासत में ये कैस घर मिलें 

           -डॉ. सन्तोष पाण्डेय

प्रगति कहाँ हैं

प्रगति कहाँ हैं? होरी के घर में अब भी
भूख, कर्ज, मातम, आँसू, अँधियारे हैं

            -चन्द्रमोहन तिवारी

जुड़ी हैं चाटुकारों

जुड़ी हैं चाटुकारों की सभाएँ,
यहाँ हर मूल्य का उपहास होगा

      -शिव ओम अम्बर

उस आदमी की

उस आदमी की वक़्त सुनाता है दास्तान
जो आदमी दास्तान से आगे निकल गया

             -माधव कौशिक

इस चमन के

इस चमन के मालियों की नस्ल ऐसी हो गई
जो भी आया, इस चमन को एक बंजर दे गया

      -ब्रह्मजीत गौतम

अक्स गर बेदाग़ है

अक्स गर बेदाग़ है तो खुद से शरमाते हो क्यों
आईने के सामने आने से कतराते हो क्यों ?

            -माधव कौशिक