Wednesday, July 31, 2024

सोचा नहीं करते हैं

सोचा नहीं करते हैं बीती हुई बातों को 
बहते हुए अश्कों को हिम्मत से दबा रखना 
    
                -पुष्पराज यादव

ख़ूब पर्दा है कि

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

            -दाग़ देहलवी

तुम्हारा दिल मिरे

तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता

            -दाग़ देहलवी

हंगामा है क्यूँ बरपा

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है

                -अकबर इलाहाबादी

मस्जिद तो बना दी

मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका

            -अल्लामा इक़बाल

हो न मायूस

हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे

        -बिस्मिल अज़ीमाबादी

साया है कम

साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का 
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ 

            -कैफ़ भोपाली

फ़रिश्ते से बढ़ कर है

फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना 
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा 

            -अल्ताफ़ हुसैन हाली

बस्ती में अपनी

बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए 
इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए 

                -कैफ़ी आज़मी

कभी कभी तो

कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें 
उदास होने का कोई सबब नहीं होता 

                -बशीर बद्र

खींचो न कमानों को

खींचो न कमानों को न तलवार निकालो 
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो 

            -अकबर इलाहाबादी

Tuesday, July 30, 2024

वो झूट बोल रह था

वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से

मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता

         -वसीम बरेलवी

Sunday, July 28, 2024

वही फिर मुझे

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

     -ख़ुमार बाराबंकवी     

दूसरों पर अगर

दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए

         -ख़ुमार बाराबंकवी

Wednesday, July 24, 2024

लालच के

लालच के अंधों को भाता कब सुख-चैन ज़माने का,
अमन-चैन गर टिकता कुछ दिन, आ जाते भड़काने लोग।

-वीरेन्द्र कुमार शेखर

Thursday, June 27, 2024

वो अच्छा पति

वो अच्छा पति, भला इंसां, बड़ा शायर, मुझे लगता 
सियासत के झमेलों में पड़ा होने से पहले था

          -वीरेन्द्र कुमार शेखर

Saturday, June 22, 2024

सियासत में

सियासत में बातों के मतलब कहाँ? 
ये झाँसे हैं झाँसों में आया न कर

            -वीरेन्द्र कुमार शेखर

भूलना चाहा

भूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक
    
                -नवाज़ देवबंदी

Monday, June 17, 2024

आई थी

आई थी जिस हिसाब से आँधी
इस को सोचो तो पेड़ कम टूटे
          -सूर्यभानु गुप्त

Wednesday, June 12, 2024

उसके हाथ में

उस के हाथ में ग़ुब्बारे थे फिर भी बच्चा गुम-सुम था
वो ग़ुब्बारे बेच रहा हो ऐसा भी हो सकता है
      -सैयद सरोश आसिफ़

Thursday, May 30, 2024

उसमें चूल्हे तो

उसमें चूल्हे तो कई जलते हैं 
एक घर होने से क्‍या होता है। 
        -डॉ. अख्तर नज़्मी 

खुद को

खुद को सूरज का तरफ़दार बनाने के लिए 
लोग निकले हैं चरागों को बुझाने के लिए। 
          -अकील नोमानी 

Tuesday, April 02, 2024

इस दुनिया में

इस दुनिया में मेरे भाई नफरत है मक्कारी है
ढूँढ रहा हूँ बस्ती-बस्ती मैं थोड़ा-सा अपनापन

                    -श्याम 'बेबस'


(आजकल, जून 1991)

मैं भी इससे जूझ रहा हूँ

मैं भी इससे जूझ रहा हूँ साहस की तलवार लिए
कटते-कटते कट जाएगा ये सारे का सारा दिन

                        -राजेन्द्र व्यथित
                    
(आजकल, जून 1991)

ईंटें उनके सर के नीचे

ईंटें उनके सर के नीचे ईंटें उनके हाथों पर
ऊँचे महल बनाने वाले सोते हैं फुटपाथों पर

-कृश्न मोहन
(आजकल, जून 1991)

अब तो पूरा जिस्म

अब तो पूरा जिस्म ही कुछ इस तरह बीमार है
पीठ बोझा हो गई है पेट पल्लेदार है
    -कुँअर बेचैन

(आजकल, जून 1991)

खिड़कियाँ खोलो

खिड़कियाँ खोलो जरा ताजी हवा आने तो दो
आदमी को आदमी की गंध भर पाने तो दो 

         -कमलेश भट्ट कमल


(आजकल, अक्तूबर 1982) 

मंजिल है बहुत दूर

मंजिल है बहुत दूर बहुत दूर ये न देख
ये देख कि तय तुझसे कितना फासला हुआ

            -सत्यपाल सक्सेना

(आजकल, अक्तूबर 1983) 

सब उसकी बात

सब उसकी बात निर्विरोेध मान लेते हैं
मानों वो आदमी न हुआ फैसला हुआ

           -सत्यपाल सक्सेना


(आजकल, अक्तूबर 1983) 

खेत में गूँजते

खेत में गूँजते फागुनी गीत सब
किसने छीने, कहाँ खो गए गाँव में
 
       -डा० गिरिराज शरण अग्रवाल



(आजकल, जुलाई 1983 ) 

Friday, March 08, 2024

माना कि इस

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके 
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम 

-साहिर लुधियानवी

Monday, March 04, 2024

आने वाली नस्लें

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-अस्रो
जब ये खयाल आयेगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था 
              
                         -फ़िराक़ गोरखपुरी

सरज़मीने-हिन्द पर

सरज़मीने-हिन्द पर अक़वामे-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़ले बसते गये हिन्दोस्ताँ बनता गया।
               
                         -फ़िराक़ गोरखपुरी

कहीं वो आके

कहीं वो आके मिटा दें न इन्तेज़ार का लुत्फ़
कहीं कुबूल न हो जाय इल्तेजा मेरी। 
                  -फ़िराक़ गोरखपुरी

Thursday, February 15, 2024

बस-कि दुश्वार

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इंसाँ होना

                -मिर्ज़ा ग़ालिब

है शैख़ ओ

है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा
ये जानवर न चर लें सब गुल्सिताँ हमारा

            -शौक़ बहराइची

हाँ उन्हीं लोगों से

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं

            -राही मासूम रज़ा

वो गाँव का इक

वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे तो लोग समझे

                -अहमद सलमान

वही हालात

वही हालात हैं फ़क़ीरों के
दिन फिरे हैं फ़क़त वज़ीरों के

            -हबीब जालिब

यूँ न मुरझा

यूँ न मुरझा कि मुझे ख़ुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम में तेरे साथ खिला हूँ मैं भी

                -मज़हर इमाम

ये रंग-ए-बहार

ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्यूँ फ़िक्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तिरी सूनी न हुई कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए

                -असरार-उल-हक़ मजाज़

ये बोला दिल्ली

ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता
कहाँ से सीखी अदा तू ने दुम दबाने की

                -साग़र ख़य्यामी

याद के चाँद

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चाँदनी जगमगाती रही रात भर

            -मख़दूम मुहिउद्दीन

मैं तो ग़ज़ल सुना के

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए

                -कृष्ण बिहारी नूर

मिरी जगह

मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता
न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या

                -ज़ेब ग़ौरी

बरसों के रत-जगों

बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे
सूरज निकल रहा था कि नींद आ गई मुझे

                -क़ैसर-उल जाफ़री


[1926 - 2005]

बरगद की शाख़

बरगद की शाख़ तोड़ दी आँधी ने पिछली रात
इस वास्ते तो गाँव का बूढ़ा उदास है

                -इमरान राहिब

फूल किलते

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की

            -मख़दूम मुहिउद्दीन

न जाने वक़्त

न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है
कभी कभी तो बड़ा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे

                -जाँ निसार अख़्तर

दुनिया भर की

दुनिया भर की राम-कहानी किस किस ढंग से कह डाली
अपनी कहने जब बैठे तो एक एक लफ़्ज़ पिघलता था

                        -ख़लील-उर-रहमान आज़मी

दुनिया भर की

दुनिया भर की यादें हम से मिलने आती हैं
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है

                    -क़ैसर-उल जाफ़री

तुम्हारे शहर का

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे

                    -क़ैसर-उल जाफ़री

तुम से पहले

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था

                        -हबीब जालिब

तमन्नाओं में

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

            -शाद अज़ीमाबादी

Wednesday, February 14, 2024

'ज़ौक़' जो मदरसे

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे

                -शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

जब तुझे याद

जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई

                    -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क्या हुस्न ने

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

                -जिगर मुरादाबादी

कौन हमारे

कौन हमारे दर्द को समझा किस ने ग़म में साथ दिया
कहने को तो साथ हमारे तुम क्या एक ज़माना था

                    -इमदाद निज़ामी

कुछ कहने का

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो

                                -इब्न-ए-इंशा

ऐ दिल की ख़लिश

ऐ दिल की ख़लिश चल यूँ ही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए

                        -बहज़ाद लखनवी

ऐ ख़ाक-नशीनो

ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे
        
                        -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इशरत-ए-क़तरा

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

                        -मिर्ज़ा ग़ालिब

इतना सन्नाटा है

इतना सन्नाटा है बस्ती में कि डर जाएगा
चाँद निकला भी तो चुप-चाप गुज़र जाएगा

                    -क़ैसर-उल जाफ़री

'इंशा' जी उठो

'इंशा' जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब जोगी का नगर में ठिकाना क्या

                                -इब्न-ए-इंशा

अब टूट गिरेंगी

अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे

                    -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब गुल से नज़र

अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ रुख़्सत हो हम लुत्फ़-ए-बहाराँ भूल गए

  -असरार-उल-हक़ ‘मजाज़ लखनवी’

दरिया को अपनी

दरिया को अपनी मौज की तुग़ियानियों से काम
किश्ती किसी की पार हो या दरमियां रहे

           -मौलाना अल्ताफ़ हुसैन 'हाली'

[1837 - 1914]

Wednesday, January 24, 2024

होता चला आया

होता चला आया है बे-दर्द ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोते हैं 

    -हसरत जयपुरी

लौट आते हैं

लौट आते हैं कदम रूठ के जाने वाले
माँ की आवाज़ जादू की छड़ी होती है 

        -जावेद अकरम फारूक़ी

दौलत, इज्जत

दौलत, इज्जत, शोहरत, अजमत सब कुछ चाट लिया दीमक ने
प्यार अमर था, प्यार अमर है, हारी दुनिया, जीता रिश्ता

          -जावेद अकरम फारूक़ी

एक से दुःख-सुख

एक से दुःख-सुख, एक सी पूजा, एक दुआ
प्यार का सच्चा मज़हब अच्छा लगता है

                        -जावेद अकरम फारूक़ी

छीना था यह

छीना था यह वतन कभी हमने उन श्वेत भेड़ियों से
मगर आज चप्पे-चप्पे पर ही साँपों का डेरा है

                      -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

जिसको नहीं

जिसको नहीं लगाव देश से ना भाषा की चिन्ता है
उसके मरने को चुल्लूभर पानी 'भक्त' घनेरा है 

                            -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

बढ़ते जाते

बढ़ते जाते टैक्स दनादन जनता भूखों मरती है
रिश्वत का बाज़ार गरम अब बिल्कुल खुल्लमखुला है 

                            -गंगाभक़्त सिंह ‘भक़्त’

वह वक़्त का

वह वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया

    -हफीज मेरठी

फिर हाथ मिलायेंगे

फिर हाथ मिलायेंगे तो शर्मिन्दगी होगी
ये सोच के रिश्तों की इबादत नहीं छोड़ी

        -जावेद अकरम फारूक़ी



 [ जावेद अकरम फारूक़ी, 01-06-1960, फतेहगढ़, फर्रुखाबाद, उ.प्र.]

Monday, January 22, 2024

उन्हीं को चीर के

उन्हीं को चीर के बढ़ना है अब किनारे पर 
उतर गए हैं तो लहरों से ख़ौफ़ खाना क्या

-आलोक मिश्रा

हमारे दिल में

हमारे दिल में छुपकर बैठ जाते हैं कई मौसम
सफर के वास्ते हम जब कभी तैयार होते हैं

          -आलोक यादव

ये खुश्क पत्ते

ये खुश्क पत्ते कहाँ से आए
अभी तो मौसम बहार का था

          -पी.पी. श्रीवास्तव रिंद

तेरी ज़मीं की

तेरी ज़मीं की ख़ाक में मिल कर चले गए 
जाने यहाँ से कितने सिकंदर चले गए
 
-मशकूर ममनून कन्नौजी

राम के राज की

राम के राज की तस्वीर थी अपनी धरती
मसलक-ए-फ़िक्र-ओ-अमल उन्स-ओ-वफ़ा था पहले 

-मौज फतेहगढ़ी

ये लगता है

ये लगता है तरक़्क़ी कर रहे हैं 
गिरावट रोज़ बढ़ती जा रही है

-मौज फतेहगढ़ी 

किसी को घर से

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा 

                            -अहमद फ़राज़

आइना देख के

आइना देख के जीने वालो 
दौर-ए-हाज़िर के भी तेवर देखो 

-शरर फतेहपुरी

मैं समझता हूँ

मैं समझता हूँ ज़माने का मिज़ाज 
वो बनाएगा मिटा देगा मुझे

-शरर फतेहपुरी 

 

[शरर फतेहपुरी, मूल नाम- राम सिंह, 16 मई 1928- 26 नवंबर 1992, फतेहपुर, उ.प्र.] 

दिल में बंदों के

दिल में बंदों के बहुत ख़ौफ़-ए-ख़ुदा था पहले
ये ज़माना कभी इतना न बुरा था पहले 

-मौज फतेहगढ़ी 
 

 
[राजेंद्र बहादुर मौज, 03 जुलाई 1922,  फ़र्रूख़ाबाद, उत्तर प्रदेश]

लम्हे के टूटने की

लम्हे के टूटने की सदा सुन रहा था मैं 
झपकी जो आँख सर पे नया आसमान था

-आदिल मंसूरी

ऐसे डरे हुए हैं

ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर

                    -आदिल मंसूरी

Sunday, January 21, 2024

इरादे बाँधता हूँ

इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ 
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए  
           
                    -हफ़ीज़ जालंधरी

काबे में भी वही है

काबे में भी वही है शिवाले में भी वही 
दोनों मकान उस के हैं चाहे जिधर रहे

-लाला माधव राम जौहर

भाँप ही लेंगे इशारा

भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया 
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं 

-लाला माधव राम जौहर

महफ़िलों में

महफ़िलों में बात जब हक़ की उठी
रूठ के हुशियार कुछ, जाने लगे

-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

सोच जब विज्ञान

सोच जब विज्ञान की आगे बढ़ी
नासमझ इन्सान घबराने लगे

-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

अब इत्र भी

अब इत्र भी मलो तो तकल्लुफ़ की बू कहाँ 
वो दिन हवा हुए जो पसीना गुलाब था

-लाला माधव राम जौहर
 

[लाला माधव राम जौहर- 1810-1890,  फ़र्रुख़ाबाद,  उ.प्र.]

Saturday, January 20, 2024

वो कौन हैं

वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत 
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है 

-आनंद नारायण मुल्ला

न हम होंगे

न हम होंगे न तुम होगे न दिल होगा मगर फिर भी
हज़ारों मंज़िलें होंगी हज़ारों कारवाँ होंगे

-मज़रूह सुल्तानपुरी 

न हम-सफ़र

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
                
                        -राहत इंदौरी

सल्तनत ने दी

सल्तनत ने दी रियाया को मदद कुछ इस तरह, 
एक टन अहसान, केवल एक रत्ती सब्सिडी

               -जय चक्रवर्ती

Thursday, January 18, 2024

सौ झूठों की

सौ झूठों की ताकत है
सच की अदना हस्ती में 

       -देवेन्द्र आर्य 

वक़्त आने दे दिखा

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ,
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है।

            -बिस्मिल अज़ीमाबादी

Wednesday, January 17, 2024

साथ लाती हैं

साथ लाती हैं हवा की गंदगी भी
इक यही आदत बुरी है खिड़कियों में 

                -अंजू केशव

जहाँ पिछले कई

जहाँ पिछले कई वर्षों से काले नाग बैठे हैं
वहाँ इक घोंसला चिड़ियों का था दादी बताती है

    -मुनव्वर राना 

Tuesday, January 16, 2024

पूछ कर

पूछ कर उनसे हम उठें-बैठें
ज़िन्दगी ऐसे तो न जी जाए

-डा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

ज़माना रोक के

ज़माना रोक के कब तक रखेगा सूरज को
हमारे घर में भी धूप आयेगी कभी न कभी

                -अतुल अजनबी

जहाँ आप

जहाँ आप पहुँचे छलाँगें लगाकर
वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे
 
             -रामदरश मिश्र

तमाम मौके

तमाम मौके लगे हाथ चलते-चलते भी
कभी-कभी जो हमें दौड़कर नहीं मिलते

            -ज़हीर कुरेशी

दे सको तो

दे सको तो कहूँ और क्या चाहिये
साँस घुटती है ताज़ा हवा चाहिये

              -महेन्द्र हुमा 

पहली बारिश

पहली बारिश में भी अब तो गंध नहीं उठती
जाने क्यों मिट्टी में वह सोंधापन नहीं रहा

            -चन्द्रभान भारद्वाज

याद अगर

याद अगर हम रखेंगे तो मर जाएँगे
इसलिए हादसों को भुलाना भी है

    -दीक्षित दनकौरी

ये मुमकिन था

ये मुमकिन था अँधेरा हार जाता
हमें कुछ और जलना चाहिये था

             -तुफ़ैल चतुर्वेदी

ये अपनी हद

ये अपनी हद से जो गुज़रे तबाह कर देंगे
समन्दरों को न छेड़ो, हदों में  दो

               -अतुल अजनबी

सत्ता के शिखरों

सत्ता के शिखरों पर भी पेशेवर अपराधी
विधि-विधान इनके पाँवों की धूल हो गए हैं

            -अशोक रावत

सूप सभा में

सूप सभा में चुप बैठा है, देख रहा है लोगों को
चलनी उड़ा रही है खिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है

                    -कैलाश गौतम

सत्य है दुबका

 सत्य है दुबका कहीं पर आदिबासी गाँव-सा
झूठ हँसता खिलखिलाता राजधानी की तरह

                  -रामदरश मिश्र

सौ दफ़ा

सौ दफ़ा आदमी को गिराये बिना
टिकने देती नहीं पीठ पर जिंदगी

                -सूर्यभानु गुप्त

हमारे ही

हमारे ही क़दम छोटे थे वरना
यहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था

       -हस्तीमल हस्ती

चलती फिरती

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है 

                    -मुनव्वर राना

दरिया का ये

दरिया का ये उफान घड़ी दो घड़ी का है
कुछ देर किनारे पे ठहर क्यों नहीं जाते
     
             -कृष्णानन्द चौबे

दिलों की साँकलें

दिलों की साँकलें और ज़हन की ये कुंडियाँ खोलो
बड़ी भारी घुटन है, द्वार खोलो, खिड़कियाँ खोलो

              -कुँअर बेचैन

दुश्मनों से

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा 
दोस्तों को आज़माते जाइए 

            -ख़ुमार बाराबंकवी

बिफरे समुंदरों

बिफरे समुंदरों पे बरसता चला गया 
आया न अब्र धूप में तपते मकान पर
 
                -रईस बाग़ी

बाग़ के सबसे

बाग़ के सबसे बड़े दुश्मन वही
कर रहे जो बाग़वानी इन दिनों

      -कमल किशोर 'भावुक'

बारूदों, अंगारों

बारूदों, अंगारों, अंधे कुओं, सुरंगों, साँपों को
झेल रहीं सदियों से दिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है

                  -कैलाश गौतम

न जाने ढूँढ़ता

न जाने ढूँढ़ता रहता है क्या अक्सर किताबों में
मेरा दस साल का बच्चा शरारत क्यों नहीं करता

                    -अशोक रावत

न जाने कितनी

न जाने कितनी सुरंगें निकल गईं उससे
खड़ा पहाड़ भी बस आँख का ही धोखा था

            -द्विजेन्द्र द्विज

मैं तो तस्वीर

मैं तो तस्वीर हूँ आँसू की, मुझे क्या मालूम
कैद रहते हैं कई दर्द के मंज़र मुझमें

            -गोविन्द गुलशन

मैं भी दरिया हूँ

मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मंज़िल नहीं
मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जायेगा
     
                        -राजगोपाल सिंह

मैं रहा चुप

मैं रहा चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक

                   -कुँअर बेचैन

मुझको जग का

मुझको जग का कच्चा चिट्ठा भी लिखना है, मैं कैसे
ख़ूद को धोखा दूँ, मज़हब की धुन में पागल हो जाऊँ

                    -अशोक रावत

पहले भाप बनूँ

पहले भाप बनूँ उड़ जाऊँ, बूँद बनूँ फिर पानी की
फिर गंगाजी में मिल जाऊँ और गंगाजल हो जाऊँ

                   -अशोक रावत

पूरे गुलशन का

पूरे गुलशन का चलन, चाहे बिगड़ जाए मगर
बदचलन होने से, खुशबू तो बचा ली जाए

          -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

रेत में तब्दील

रेत में तब्दील चट्टानों को होना ही पड़ा
जाने कितना हौसला पुर-जोश सरिताओं में था

        -एहतराम इस्लाम

याद बरबस

याद बरबस आ गयी 'माँ' मैंने देखा जब कभी
मोमबत्ती को पिघलकर रोशनी देते हुए

                    -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

ढूँढ़ रहे हो

ढूँढ़ रहे हो गाँव-गाँव में जाकर किस सच्चाई को
सच तो सिर्फ वही होता है, जो दिल्ली दरबार कहे

                        -बालस्वरूप राही 

सीधे-सच्चे लोगों के

सीधे-सच्चे लोगों के दम पर ही दुनिया चलती है
हम कैसे इस बात को मानें, कहने को संसार कहे

                        -बालस्वरूप राही

सरफिरे लोग

सरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

    -मुनव्वर राना

मुहब्बत करने

मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है

        -मुनव्वर राना

तुम्हारे शहर में

तुम्हारे शहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिलकर उठाते हैं

        -मुनव्वर राना 

तुम्हारी महफ़िलों में

तुम्हारी महफ़िलों में हम बड़े-बूढ़े जरूरी हैं
अगर हम ही नहीं होंगे तो पगड़ी कौन बाँधेगा

        -मुनव्वर राना 

सैर कर दुनिया

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ 

        -ख़्वाजा मीर दर्द

नए कमरों में अब

नए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है


हमीं थामे रहे गिरती हुई दीवार को वरना, 
सलीके से बुजुर्गो को निशानी कौन रखता है।

-मुनव्वर राना

Monday, January 15, 2024

ज़माने के ख़ुदा

ज़माने के ख़ुदा या नाख़ुदा कोशिश भले कर लें
गुनहगारों की कश्ती है, नदी में डूब जायेगी

              -अंसार कम्बरी

घर तो है

घर तो है लेकिन घर में अब आँगन नहीं रहा
रिश्ते हैं रिश्तों में पर अपनापन नहीं रहा

                      -चन्द्रभान भारद्वाज

गेहूँ बोये किन्तु

गेहूँ बोये किन्तु खेत में फसल उगी बन्दूकों की
गाँव हो गये कैसे चम्बल बरगद ने सब देखा है

                -राजगोपाल सिंह

ख़ुदा के घर

ख़ुदा के घर उन्हें बख़्शीश मिलती है जो अपने
गुनाहों का घड़ा भरने से पहले फोड़ देते है

        -मासूम ग़ाज़ियाबादी

खिड़कियों से

खिड़कियों से जो मुझको दिखता था
मैंने उतना ही आस्मां समझा

             -गुलशन मदान

कहीं दिखे ही

कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें
कि जिनके साए की बूढ़े मिसाल देते हैं

                -द्विजेन्द्र द्विज

क्या राजा

क्या राजा, क्या दरबारी, क्या नौकर-चाकर, सब
राजकोष को खाने में मशगूल हो गए हैं

                 -अशोक रावत

कहते थे जिसे

कहते थे जिसे दूध का धोया हुआ सभी
निकला वो रँगा स्यार है, सच कह रहा हूँ मैं

      -कैलाश गौतम

कुछ करो ये

कुछ करो ये ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी जैसी लगे
नहीं होती है बस खाने कमाने के लिये

                 -कमलेश द्विवेदी

उठाती है जो

उठाती है जो ख़तरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खज़ाना ढूँढ़ लेती है

                      -राजेन्द्र तिवारी

कोई उन्हें भी

कोई उन्हें भी तो समझाए कोई कुछ उन से भी कहे
जब देखो तब आ जाते हैं मुझ को ही समझाने लोग

-रईस रामपुरी

इस सदी सी

इस सदी सी बेहया कोई सदी पहले न थी
इस क़दर बेआब आँखों की नदी पहले न थी

                 -नूर मुहम्मद 'नूर'

उसका भाषण

उसका भाषण था कि मक्कारों का जादू 'एहतराम'
मैं कमीना था कि बुज़दिल, मुग्ध श्रोताओं में था

                    -एहतराम इस्लाम

कितने दिन

कितने दिन तक बंद ही रखा मुहूरत के लिये
एक कस्बे की नदी पर पुल नया बनने के बाद

                      -हरजीत सिंह

कोई दीवाना

कोई दीवाना जब होठों तक अमरित-घट ले आया
काल-बली बोला मैने तुझसे बहुतेरे देखे हैं 

      -सोम ठाकुर

कोंपल की हिफाज़त

कोंपल की हिफाज़त का हमें दे के भरोसा 
कितने ही कटे ज़िन्दा शजर देख रहा हूँ

              -अखिलेश तिवारी

एक मंज़िल और

एक मंज़िल और हर मंज़िल के बाद आई नज़र
रफ़्ता रफ़्ता हो गया काफूर जीने का मज़ा
      
               -ओम प्रकाश नदीम

आदमी में आदमीयत

आदमी में आदमीयत और खुशबू फूल में
हो सके तो शहर में अब ये खज़ाना ढूँढ़ना

              -नूर मुहम्मद 'नूर'

एक झूठे सच

एक झूठे सच की खातिर कितने सच झुठला दिए
आपकी दानाईयों ने मेरा दिल दहला दिया

    -संजय ग्रोवर

इन्सान की तलाश

इन्सान की तलाश में बस्ती के लोग थे
इन बस्तियों को इतने ख़ुदा कौन दे गया

          -महेन्द्र हुमा 

कुछ लुटेरों ने

कुछ लुटेरों ने भी पहना है फ़रिश्तों का लिबास
इनके बारे में ग़लतफ़हमी न पाली जाए

                -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

दोस्तों ने जिसे

दोस्तों ने जिसे डुबाया हो
वो ज़रा देर से सँभलता है

    -बालस्वरूप राही

हमने माना कि

हमने माना कि महका के घर रख दिया
कितने फूलों का सिर काट कर रख दिया

    -उदय प्रताप सिंह

Thursday, January 11, 2024

सवार हमने

सवार हमने बदल डाले सैकड़ों लेकिन
हमारी पीठ पे सदियों की जीन बाकी है

                 -गणेश गंभीर

मैंने हर रिश्ते में

मैंने हर रिश्ते में खाली लाभ तलाशा
मुझको अपने घर ही में बाज़ार मिला है

                    -लक्ष्मण

जो भाई से

जो भाई से ख़फा होकर के आँगन बाँट लेता है
वो माँ की आँख में उतरी नमी को भूल जाता है

    -रामबाबू रस्तोगी

क्या नहीं मिल रहा

क्या नहीं मिल रहा यहां आजकल
बिक रहा है सरे आम ईमान तक

           -कृष्णानन्द चौबे

जिक्र जिसका

जिक्र जिसका न किताबों में न चर्चाओं में
जाने किस वक्त की तहजीब का खंडहर हूँ मैं

               -कृष्णानन्द चौबे

जब तक वे

जब तक वे समंदर में समाते नहीं तब तक
दरिया तो किनारों से, किनारा नहीं करते

                  -कृष्णानन्द चौबे


.....................
[5 अगस्त 1931, कायमगंज, फर्रुखाबाद

अपनी साज़िश में

अपनी साज़िश में हवाएँ हो गयीं फिर कामयाब
रह गयी फिर बादलों के बीच फँस कर रोशनी

                   -बुद्धिसेन शर्मा

घर की देहरी

घर की देहरी छोड़कर जाने को जी करता नहीं
क्या कहूँ घर की ज़रूरत ले गई बाहर मुझे

          -कैलाश गौतम

हो गए जब

हो गए जब बंद सारे रास्ते मेरे लिए
खुल गया कोई नया दरवाज़ा मेरे सामने!

    -योगेन्द्रदत्त शर्मा

हाँ, गुज़र ही जाएगा

हाँ, गुज़र ही जाएगा दौर ये, नहीं दौर कोई भी मुस्तकिल
यही आदमी का यक़ीन है, यही वक़्त का भी बयान है !

                   -योगेन्द्रदत्त शर्मा

शोले नफ़रत के

शोले नफ़रत के, ये बँटवारे, ये सहमी बस्ती
सब सियासत के इशारों का पता देते हैं

                    -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

वो हुकूमत को

वो हुकूमत को नज़र आते हैं, दुश्मन की तरह
जो भी 'सिस्टम' में दरारों का पता देते हैं

                    -लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

पत्थरों के बीच

पत्थरों के बीच थोड़ी जिंदगी भी चाहिये
देवताओं के शहर में आदमी भी चाहिये

      -हबीब कैफ़ी

जो सियासत कहे

जो सियासत कहे उस पे कैसे चलें
आदमी हैं मशीनों के पुर्जे नहीं

      -विनय मिश्र

किसी मरीज़ से

किसी मरीज़ से कहना कि आप अच्छे हैं
ये बात कहने का मतलब दवा भी होता है

    -हबीब कैफ़ी

कभी जो गालियाँ

कभी जो गालियाँ दे माँ तो ये समझ लेना
कि उसकी गाली का मतलब दुआ भी होता है

      -हबीब कैफ़ी

एक टुकड़ा सच

एक टुकड़ा सच का जाने सोच में कब आ गया
उम्र भर मैं जिंदगी को बेमज़ा लिखता रहा

      -अश्वघोष

Wednesday, January 10, 2024

वक़्त के साथ

वक़्त के साथ बदल जाता मैं लेकिन हर पल 
मेरा माज़ी मुझे आईना दिखाता ही रहा

-हैरत फ़र्रुख़ाबादी

दोस्तो इस दौर

दोस्तो इस दौर की सब से बड़ी ख़ूबी है ये 
आदमी पत्थर का दिल पत्थर का घर पत्थर का है 

-हैरत फ़र्रुख़ाबादी



[ हैरत फ़र्रुखाबादी, मूल नाम- ज्योति प्रसाद मिश्रा,  08 फरवरी 1930]

तन्हा सफ़र

तन्हा सफ़र तवील है मैं ऊब जाऊँगा 
ऐ सर-फिरी बयार मिरे साथ-साथ चल 

-पुष्पराज यादव

ख़ुदा ने किस शहर

ख़ुदा ने किस शहर अंदर हमन को लाए डाला है
न दिलबर है न साक़ी है न शीशा है न प्याला है 

                        -पंडित चंद्रभान बरहमन

किसी रईस की

किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है 
ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाए हुए

                    -अमीर मीनाई

जंग तो ख़ुद ही

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है 
जंग क्या मसअलों का हल देगी

                -साहिर लुधियानवी

कैसे कोई

कैसे कोई दुख-सुख बाँटे, कैसे कोई बात करे
मौसम तानाशाह खड़ा है अपने पंजे फैलाए

    -जय चक्रवर्ती

समापन हो गया

समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का
उदासी आ गई अँगड़ाइयों तक तुम नहीं आए

          -बलबीर सिंह रंग

पहले भी देखा

पहले भी देखा सत्ता के मद में लोगों को
पर इतना निर्लज्ज और मदहोश नहीं देखा

          -अशोक रावत 

तू कभी सुख की

तू कभी सुख की किसी लोकोक्ति सी मिलती हमें
तेरी खातिर दर्द के अनुप्रास को जिन्दा रखा

          -रमेश राज

झूठ कितना भी

झूठ कितना भी आँख दिखलाए
सच कभी खुदकुशी नहीं करता

      -ओम प्रकाश 'नूर'

क्या पूछते हो

क्या पूछते हो नामो-निशाने मुसाफिरां
हिंदोस्तां में आए हैं, हिंदोस्तां के थे

    -जोन एलिया

उसको सच कहना

उसको सच कहना जरूरी था मगर
सूलियों को देखकर के डर गया 

    -महेन्द्र हुमा

अंदाज शातिराना है

अंदाज शातिराना है खाँसी का आपकी
खाँसी नहीं है आपको, ऐसे न खाँसिए

      -डा० अश्वघोष

अजब है रात से

अजब है रात से आँखों का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है

                -नासिर काज़मी

Monday, January 08, 2024

दिल ने घंटों की

दिल ने घंटों की धड़कन लम्हों में पूरी कर डाली 
वैसे अनजानी लड़की ने बस का टाइम पूछा था 

    -फ़ज़्ल ताबिश

Sunday, January 07, 2024

आँगन में धूप

आँगन में धूप, धूप को ओढ़े उदासियाँ 
घर में थे ज़िंदगी के निशाँ कम बहुत ही कम

-पी पी श्रीवास्तव ‘रिंद’

हो चुकी जब

हो चुकी जब ख़त्म अपनी ज़िंदगी की दास्ताँ 
उन की फ़रमाइश हुई है इस को दोबारा कहें

-शमशेर बहादुर सिंह

हर शख्स की

हर शख्स की खुशी में हुआ जब से मैं शरीक
उस दिन से मेरे घर कई त्यौहार हो गए

             -अरुण साहिबाबादी 

वो कल नाराज़ था

वो कल नाराज़ था जिससे उसी के घर चला आया
बस उसकी ज़िद है सच्चाई की, वो रूठा नहीं है

             -किशन तिवारी 

शंकर की तरह

शंकर की तरह सख्त जो किरदार हो गए
उनके लिए तो नाग भी सिंगार हो गए

          -अरुण साहिबाबादी

रास्ते जब

रास्ते जब नए बनाओगे
कुछ तो काँटे जरूर पाओगे

         -सुल्तान अहमद

पेड़ की इक

पेड़ की इक शाख़ से उसका रहा रिश्ता सदा
सुन रही हूँ लौट आया एक पंछी आज घर

            -तारकेश्वरी तरु 'सुधि'

पायल बजा के

पायल बजा के पास से गोरी गुज़र गयी
होता है यूँ भी प्यार का इज़हार गाँव में

            -सलीम शहज़ाद

पगडंडियाँ बबूल

पगडंडियाँ बबूल की पेड़ों से जा मिलीं
छालों को यह मज़ाक़ बुरी तरह खल गया

                   -मुज़फ़्फ़र हन्फ़ी

किसे खबर थी

किसे खबर थी हमें राहबर ही लूटेंगे
बड़े खुलूस से हम कारवां के साथ रहे।

                 -हबीब जालिब

दाना लेने उड़े

दाना लेने उड़े परिंदे कुछ
आ के देखा तो आशियाँ गायब   
  
         -सुल्तान अहमद

तुमको सच बोलने की

तुमको सच बोलने की आदत है
कैसे हर एक से निभाओगे?

  -सुल्तान अहमद

कर लिया पूरे

कर लिया पूरे समंदर का सफ़र
जाके डूबे गाँव के तालाब पर

           -बाक़र नक़वी

अब न वह गीत

अब न वह गीत, न चौपाल, न पनघट, न अलाव
खो गये शहर के हंगामें में देहात मेरे

                -फज़ील जाफ़री

आँधियों का

आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले,
पर दिये का भी सफ़र चलता रहेगा।

            -कमलेश भट्ट कमल

अपने परों को लेकर

अपने परों को लेकर हर लम्हा डर रही है
कांटों के जंगलों से तितली गुजर रही है

             -अरुण साहिबाबादी 

कुछ पल को

कुछ पल को हो गया था मैं भड़का हुआ चराग़ 
कुछ देर आँधियों से भी सँभला न जा सका 

-त़ारिक क़मर

आँधियों से भी

आँधियों से भी दरख्तों में न हो टकराव सो
दूरियाँ लाजिम हैं इतनी दो तनों के बीच में

           -राजगोपाल सिंह

उदास धूप का

उदास धूप का मंजर बदलने आया है
कि आज बर्फ पर सूरज टहलने आया है।

             -ज्ञान प्रकाश विवेक

उमस, अँधेरा, घुटन

उमस, अँधेरा, घुटन, उदासी, ये बंद कमरों की खूबियाँ हैं
खुली रखो गर ये खिड़कियाँ तो कहीं से ताज़ा हवा भी आए

      -सुल्तान अहमद

जिस तरह चाहो

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं

      -दुष्यन्त कुमार

चाहता है वो

चाहता है वो कि दरिया सूख जाए
रेत का व्यापार करना चाहता है

            -ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

Saturday, January 06, 2024

आग किसी के

आग किसी के घर लगती हो अपना ही घर जलता है
यही सोचकर, यही समझकर, चलकर आग बुझानी है

          -मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश'

किनारों ने नदी को

किनारों ने नदी को बाँध लेने का भरम पाला
नदी बिफरी, किनारे तोड़ मदमाती हुई चल दी

               -विनोद तिवारी

ये माँ ही है

ये माँ ही है जो रह जाती है बस दो टूक रोटी पर
मगर बच्चों को अपने पेट-भर रोटी खिलाती है 

-राजेन्द्र वर्मा

रात कितनी भी

रात कितनी भी घनी हो सुबह आयेगी ज़रूर
लौट आया आपका विश्वास तो अच्छा लगा

-रामदरश मिश्र

हम तो अपने लिए

हम तो अपने लिए अपने ही जलाते हैं चराग़
चाँद-सूरज से उजाला नहीं माँगा करते

            -अख़्तर नज़्मी 

हवा नफ़रतों की

हवा नफ़रतों की चली तो थी लेकिन
मुहब्बत के अब भी दिये जल रहे हैं

             -अनवारे इस्लाम

हैं कंधे वही

हैं कंधे वही पालकी है वही 
तमाशा अभी सब वही का वही

           -डा० जगदीश व्योम

घरों दफ्तरों में

घरों दफ्तरों में  मठों मदरसों में
बताओ कहाँ अब सियासत नहीं है

       -आलोक यादव

क़लम का साथ

क़लम का साथ हमको मिल गया तो बच गए वरना
हमेशा पत्थरों से आइनों को तोलते रहते 

-अशोक रावत

इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का

इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फ़ैले तो ज़माना है

            -जिगर मुरादाबादी

Friday, January 05, 2024

उसकी याद आयी है

उसकी याद आयी है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

-राहत इन्दौरी

सर ढका हमने

सर ढका हमने अगर तो पाँव नंगे रह गए
अपने अरमानों की चादर उम्र भर छोटी रही

             -विजय कुमार सिंघल

यहाँ तक आते-आते

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

              -दुष्यन्त कुमार

दाने तक पहुँची

दाने तक पहुँची तो चिड़िया जिन्दा थी
जिन्दा रहने की कोशिश ने मार दिया

             -परवीन शाकिर

डूब गया था

डूब गया था दर्द के सागर में कल बनवासी सूरज
रात मगर अब तक आंगन में आस के दीप जलाये है

               -प्रेम अबरोहरवी

बाजों ने जब से

बाजों ने जब से जश्न मनाने की ठान ली
कोटर में कबूतर तभी से तंगहाल हैं

         -आसिफ रोहतासवी

मत चिरागों को

मत चिरागों को हवा दो बालियाँ जल जायेंगी
ये हवन वो है कि जिसमें उँगलियाँ जल जायेंगी

              -सुरेन्द्र चतुर्वेदी

मेरी बस्ती के

मेरी बस्ती के सभी लोगों को जाने क्या हुआ
देखते रहते हैं सारे बोलता कोई नहीं 

         -माधव कौशिक

भूख पीड़ा बेवसी

भूख पीड़ा बेवसी बेरोजगारी मुफलिसी
मेरी पीढ़ी को विरासत में ये कैस घर मिलें 

           -डॉ. सन्तोष पाण्डेय

प्रगति कहाँ हैं

प्रगति कहाँ हैं? होरी के घर में अब भी
भूख, कर्ज, मातम, आँसू, अँधियारे हैं

            -चन्द्रमोहन तिवारी

जुड़ी हैं चाटुकारों

जुड़ी हैं चाटुकारों की सभाएँ,
यहाँ हर मूल्य का उपहास होगा

      -शिव ओम अम्बर

उस आदमी की

उस आदमी की वक़्त सुनाता है दास्तान
जो आदमी दास्तान से आगे निकल गया

             -माधव कौशिक

इस चमन के

इस चमन के मालियों की नस्ल ऐसी हो गई
जो भी आया, इस चमन को एक बंजर दे गया

      -ब्रह्मजीत गौतम

अक्स गर बेदाग़ है

अक्स गर बेदाग़ है तो खुद से शरमाते हो क्यों
आईने के सामने आने से कतराते हो क्यों ?

            -माधव कौशिक

आज उनके हाथ में

आज उनके हाथ में है इस चमन की आबरू
कल थे जिनके बिस्तरों से तितिलियों के पर मिले

-डॉ. सन्तोष पाण्डेय

आदमी बढ़ता

आदमी बढ़ता गया है चाँद तक
आदमीयत की विदाई हो गयी 
  
       -प्रहलाद नारायण बाजपेयी

उपवन उजाड़ के

उपवन उजाड़ के वो मेरा, क्यों चली गई
मेरी तो आँधियों से कोई दुश्मनी न थी

            -विजय लक्ष्मी 'विभा'

इंसाँ अक्सर सबसे

इंसाँ अक्सर सबसे तो बतियाता है
खुद से बातें करने से कतराता है

       -चन्द्रमोहन तिवारी

Thursday, January 04, 2024

जो उलझ कर

जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में,
गाँव तक वह रोशनी आएगी कितने साल में?

              -अदम गोंडवी

गाँव की मत पाल

गाँव की मत पाल तू खुश्फ़हमियाँ
अब वहाँ के हाल भी अच्छे नहीं

          -हरेराम समीप

मैं लानत भेजता हूँ

मैं लानत भेजता हूँ मुल्क की ऐसी तरक्की पर,
किसानों का मुकद्दर हो जहाँ मजदूर हो जाना!

        -अशोक रावत

लाख कोशिशों के

लाख कोशिशों के बावजूद अंधकार,
रोशनी के वंश को मिटा नहीं सके

          -अशोक रावत

हो गई है

हो गई है नदी बहुत भावुक
याद कर के पहाड़ की बातें

    -ओमप्रकाश यती

हम जहाजों में

हम जहाजों में उड़कर कहाँ जाएँगे
लौटना तो पुराने मुहल्ले में है!

        -प्रदीप कुमार रौशन

हम चले तो

हम चले तो संग ग़म के काफ़िले भी चल दिये
हैं बहुत मायूसियाँ पर हौसले अपनी जगह

         -पुष्पा रघु

सियासत खेलती है

सियासत खेलती है और हम फुटबाल बनते हैं
मज़े की बात तो यह है हमें शिकवा नहीं होता

                -कृष्ण सुकुमार

लोगो मेरे साथ चलो

लोगो मेरे साथ चलो तुम जो कुछ है वो आगे है
पीछे मुड़कर देखने वाला पत्थर का हो जाएगा

    -क़तील शिफ़ाई

लौट आए फिर

लौट आए फिर हरापन, ऐसी कुछ तरकीब कर
आरियां ही मत जुटा सूखे शजर के वास्ते 

            -कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

यहाँ तो शख़्स की

यहाँ तो शख़्स की पहचान हो गई मुश्किल
हमारे शहर में जिस्मों पे सर नहीं होता

      -परवेज़ अख़्तर

यही बेहतर है

यही बेहतर है अपने आप में अब सीख लें रहना
गए वो दिन चलन होता था जब मिलने-मिलाने का

          -मधु 'मधुमन'

रफ्तः रफ्तः जो

रफ्तः रफ्तः जो हक़ीकत थे, कहानी हो गए
ख़ून से सींचे हुए रिश्ते भी पानी हो गए

             -कुँअर बेचैन

लग गए जब

लग गए जब परिंदों के पर तो वो फिर
उड़ गए एक दिन आशियां छोड़ कर

                -मधु 'मधुमन'

लोग आवाज़

लोग आवाज़ उठाते नहीं मजबूरी में
और सरकार समझती है, रिआ’या ख़ुश है

                    -मधु 'मधुमन'

धूप ही धूप है

धूप ही धूप है अब छाँव बहुत थोड़ी है
राह मुश्किल है मगर आस नहीं छोड़ी है

-बी आर विप्लवी

दुकानों में खिलौने

दुकानों में खिलौने देखकर मुँह फेर लेते हैं
किसी मुफ़लिस के बच्चों की कोई देखे ये लाचारी

            -कुँअर बेचैन

तुम तो कहते थे

तुम तो कहते थे अँधेरे हैं मुक़द्दर उसका
उसने सूरज को हथेली पर उठा रक्खा है   

           -विकास शर्मा 'राज़'

नमक लिए हुए

नमक लिए हुए फिरते हैं लोग मुट्ठी में
तू अपने ज़ख़्म ज़माने को मत दिखाया कर
            
                -मधु 'मधुमन

बच्चों के सच्चे

बच्चों के सच्चे ज़ेह्नों में झूठी बातें मत डालो
काँटों की सुहबत में रहकर फूल नुकीला हो जाता है

          -शकील आज़मी

मुझसे मिलने के लिए

मुझसे मिलने के लिए आए तो परदे में रहे
दर्द से कहना कि मेरे घर में सलीके से रहना

          -अशोक साहिल

मैं अपने घर का

मैं अपने घर का अकेला कमाने वाला हूँ
मुझे तो साँस भी आहिस्तगी से लेना है

        -शकील जमानी

मातहत होने का

मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ

          -मनोज अबोध

मज़ा आया तो

मज़ा आया तो फिर इतना मज़ा आया मुसीबत में
ग़मों के साथ अपनेपन का इक रिश्ता निकल आया

                -कृष्ण सुकुमार

मेरी मजबूरियाँ

मेरी मजबूरियाँ मेरे उसूलों से हैं टकरातीं
जहाँ पर सर उठाना था, वहीं पर सर झुकाता हूँ

            -कृष्ण सुकुमार

मुझे यह भी मिले

मुझे यह भी मिले, वो भी मिले, रिश्ता भले टूटे
यही चाहें कोई रिश्ता निकट का छोड़ जाती हैं

                -कुँअर बेचैन

मैं कितने ही

मैं कितने ही बड़े लोगों की नीचाई से वाकिफ़ हूँ
बहुत मुश्किल है दुनिया में बड़े बनकर, बड़े रहना

            -कुँअर बेचैन

ख़ुद हवा आयी है

ख़ुद हवा आयी है चलकर तो चलो बुझ जायें
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बेचारी की

             -अक़ील नोमानी

कौन सी धूप

कौन सी धूप इस मायानगर में दोस्तो
हम तो छोटे हो गए परछाईयाँ बढ़ती गईं

        -रामदरश मिश्र

घर का बँटवारा हुआ

घर का बँटवारा हुआ तो घर का आँगन रो पड़ा
दिल भी कितने बँट रहे थे घर के बँटवारे के साथ

            -कुँअर बेचैन

घड़ा मिट्टी का

घड़ा मिट्टी का पत्तों की चटाई
बुजुर्गों की निशानी है अभी तक

      -कुमार नयन

जो ऊँचे चढ़ के

जो ऊँचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे दिखते हैं हरदम
प्रफुल्लित वृक्ष की यह भूमि कुसुमागार करते हैं

          -जयशंकर प्रसाद

गोलियाँ कोई

गोलियाँ कोई निशाना बाँधकर दागी थीं क्या
खुद निशाने पै आ पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें

              -गिरीश तिवारी 'गिर्दा'

गुब्बारे से बदन

गुब्बारे से बदन पे वो मग़रूर था बहुत
पिचका तो साँस-साँस से आने लगी हवा

         -फ़िराक़ जलालपुरी

गुलाम बन गया है

गुलाम बन गया है हर कोई मशीनों का
हमें तो डर है कि अब आदमी की खैर नहीं

    -मधु 'मधुमन'

चाँद क्या सजता

चाँद क्या सजता सँवरता है कभी
अच्छी शै अच्छी नज़र आयेगी खुद

            -सरदार आसिफ़

जिनके जबड़ों से

जिनके जबड़ों से खूँ टपकता है
उनकी खिदमत बजा रहे हैं हम

       -कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

जैसे कोई अफसर

जैसे कोई अफसर बात करे चपरासी से
बूढ़े बाप से अब यूँ बेटे बातें करते हैं   
   
    -अहमद कमाल हशमी 

ज़रा से शक

ज़रा से शक की चोटों ने दरारें डाल दीं दिल में
समझदारी रही होती तो घर टूटा नहीं होता

                -कृष्ण सुकुमार

जिन पे लफ़्ज़ों के

जिन पे लफ़्ज़ों के दिखावे के सिवा कुछ भी नहीं
उनको फनकार बनाने पे तुली है दुनिया

               -कुँअर बेचैन

जरा सी चीज़ भी

जरा सी चीज़ भी कितनी कठिन उनके लिए तब थी
पिता की ज़िन्दगी के उस समर की याद आती है

                -ओमप्रकाश यती

ज़रा मिल बैठ कर

ज़रा मिल बैठ कर आपस में थोड़ी गुफ़्तगू करिए
कोई भी मस'अला लड़ कर तो सुलझाया नहीं जाता

            -मधु 'मधुमन'

Wednesday, January 03, 2024

आसमानों की

आसमानों की बुलंदी से उसे क्या लेना
अपने पिंजरे में ही रह कर जो परिंदा खुश है

            -मधु 'मधुमन'

आँधियाँ बाल भी

आँधियाँ बाल भी बाँका नहीं करतीं उसका
पेड़ जो अपनी ज़मीनों से जुड़ा होता है

                -मधु 'मधुमन'

कोई स्कूल की

कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है

    -शकील जमानी  

कभी गिन कर

कभी गिन कर नहीं देखे सफ़र में मील के पत्थर
नज़र मंज़िल पे रक्खी, हर क़दम रफ़्तार पर रक्खा

                    -कृष्ण सुकुमार

अगर मिलूँ भी

अगर मिलूँ भी किसी से तो एहतियात के साथ
क़रीब आऊँ न इतना कि दूरियाँ देखूँ

            -सरदार आसिफ़

आज शारदा माँ

आज शारदा माँ सरकारी दफ्तर में चपरासी है
और कई फाइलख़ाँ अफसर बने हुए कवि दिग्गज भी

        -चिरंजीत

अपने हर दोष को

अपने हर दोष को औरों से छुपाने के लिए
उसने औरों में कई दोष निकाले होंगे

            -बल्ली सिंह चीमा

आदमी कितना बँटा

आदमी कितना बँटा दफ्तर, गली, घर-बार में
यह खबर छपती नहीं है एक भी अख़बार में

-दिनेश ठाकुर

आने वाली नस्ल को

आने वाली नस्ल को एक नई दुनिया मिले
जंग लग जाए इलाही, तोप में तलवार में 

      -दिनेश ठाकुर

कभी पेड़ों को भी

कभी पेड़ों को भी छुट्टी दिया कर
हवा तू भी कभी पैदल चला कर

      -देवेन्द्र कुमार आर्य

कांड पर संसद

कांड पर संसद तलक ने शोक परगट कर दिया
'जनता ससुरी' लाश बाबत रो पड़ी तो क्या करें

    -गिरीश तिवारी 'गिर्दा'

उन्हें अवकाश

उन्हें अवकाश ही इतना कहाँ है मुझसे मिलने का
किसी से पूछ लेते हैं यही उपकार करते हैं 
     
    -जयशंकर प्रसाद

उसने हमको

उसने हमको झील तराई और पहाड़ दिए
हमने उन सबकी गर्दन में पंजे गाड़ दिए

    -मुजफ़्फ़र हऩफी

अम्न के परिंदों

अम्न के परिंदों की सरहदें नहीं होतीं
हम जहाँ ठहर जाएँ वो नगर हमारा है

      -इक़बाल अशहर 

Monday, January 01, 2024

पास आकर

पास आकर एक सागर से नदी ने यह कहा
डूबने दे मुझको खुद में, थाह देखेंगे तेरी

-रमा सिंह

अब उसी के वास्ते

अब उसी के वास्ते घर में कोई कमरा नहीं
वो, जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया

-मानोशी चटर्जी

हवा आने दो ताज़ा

हवा आने दो ताज़ा, खोल दो सब खिड़कियाँ घर की
हवा पे सबका हक है, यों हवा को रोकना कैसा

-कृष्ण शलभ

कहीं से बीज इमली के

कहीं से बीज इमली के, कहीं से पर उठा लाई
ये बच्ची है बहुत खुश, एक दुनिया, घर उठा लाई

-कृष्ण शलभ

कुछ धूप आज छीनें

कुछ धूप आज छीनें बढ़कर इन्हीं से आओ
मुट्ठी में इनकी सूरज सदियों से बस रहा है

-डॅा. अनिल गहलौत

मेले में ले सके

मेले में ले सके न कुछ भी भाव पुछकर
हर बार अण्टियाँ टटोलते पिरे हैं हम

-डॅा. अनिल गहलौत

Sunday, December 31, 2023

वो चीख़ उभरी

वो चीख़ उभरी बड़ी देर गूँजी डूब गई 
हर एक सुनता था लेकिन कोई हिला भी नहीं 

-जावेद अख़्तर

बुलंदी पर उन्हें

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता 

    -जावेद अख़्तर

दिल्ली कहाँ गईं

दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें 
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं 

-जाँ निसार अख़्तर

फ़ुर्सत-ए-कार

फ़ुर्सत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारो
ये न सोचो की अभी उम्र पड़ी है यारो 
-जाँ निसार अख़्तर

पटे न जो तेरी

पटे न जो तेरी सूरज से, चाँद-तारों से 
तो अपने हाथ में जुगनू की रोशनी रखना

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

लिखा है जो मुक़द्दर में

लिखा है जो मुक़द्दर में, मिटाना उसको नामुमकिन
इसी भ्रम में सभी कुछ झेलना अच्छा नहीं लगता

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

हम तो बचपन से

हम तो बचपन से अँधेरों की पनाहों में रहे हैं 
सिर्फ़ महलों तक रहे हैं, बस, बसेरे रोशनी के

                -विनोद भृंग

हवा का रुख

हवा का रुख बदलने की, अगर ताक़त नहीं हममें 
किसी तिनके-सा उस रुख़ में, ज़रूरी तो नहीं बहना

-सुरेन्द्र सिंघल

समय तो रेत है

समय तो रेत है इस रेत को रुकना नहीं आता,
रखो मुट्ठी में चाहे जितना कसकर, हमने देखा है।

                -कमलेश भट्ट कमल

हमें झूठों की आदत

हमें झूठों की आदत पड़ गयी कुछ इस तरह लोगो
कोई सच्चा दिखाई दे तो अब हम चौंक जाते हैं!

                    -कमलेश भट्ट कमल

रह नहीं सकते

रह नहीं सकते उड़ानों में ही ज़्यादा देर तक,
आसमाँ वाले परिन्दों को धरा भी चाहिए। 
  
                    -कमलेश भट्ट कमल 

वो केवल हुक्म देता है

वो केवल हुक्म देता है, सिपहसालार जो ठहरा 
मैं उसकी जंग लड़ता हूँ, मैं बस हथियार जो ठहरा

      -सुरेन्द्र सिंघल

जिसे देखो वही

जिसे देखो वही पाले है भ्रम 'दुष्यन्त' होने का
भले उसको ग़ज़ल की एबीसीडी भी नहीं आती!

                -कमलेश भट्ट कमल

जब ये लगता है

जब ये लगता है, हक़ीक़त न सुनेगा कोई
अपनी फ़रियाद फ़सानों में सुना देते हैं

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

करोड़ों देवता हैं

करोड़ों देवता हैं, उनके लाखों-लाख मंदिर हैं
मुसीबत आए तो जाने कहाँ भगवान सोता है!

                -कमलेश भट्ट कमल

कभी कुछ देर बैठो

कभी कुछ देर बैठो पास तो ख़ुद जान जाओगे, 
स्वयं में कितनी बेचैनी कोई सागर समेटे है!

      -कमलेश भट्ट कमल

पहाड़ों ने उगाए हैं

पहाड़ों ने उगाए हैं करोड़ों पेड़ छाती पर, 
करोड़ों पेड़ हैं, जो पर्वतों का ध्यान रखते हैं।
        
                -कमलेश भट्ट कमल 

परिन्दों की

परिन्दों की ज़रा नाज़ुक-सी काया पर न जाना
छुपी है आसमाँ की दास्ताँ पंखों के पीछे
   
            -कमलेश भट्ट कमल

पुराने गिर गये पत्ते

पुराने गिर गये पत्ते तो आएँगे नये इक दिन
कि पतझड़ ख़त्म होता है किसी मधुमास में जाकर

                -कमलेश भट्ट कमल

न जाने बाँटता है

न जाने बाँटता है कौन सुख-दुख की ये सौगातें
उजाले मुट्ठियों में कैद, तम के पाँव पसरे हैं

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

देवता भी हो

देवता भी हो अगर मग़रूर, उसके सामने 
सर भले सिजदे में हो, पर बंदगी मत कीजिये

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

तरक्की के अजब

तरक्की के अजब इस दौर से हम लोग गुज़रे हैं
बहुत सँवरे, सजे बाज़ार हैं, घर-बार बिखरे हैं

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

तूने ली कभी

तूने ली कभी न मेरी ख़बर, मैं न तुझसे था कभी बेख़बर
न तुझे ही उसका मलाल है, न मुझे ही इसका मलाल है

     -ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

तोड़ डालेंगी

तोड़ डालेंगी तुझे ये चुप्पियाँ खामोशियाँ
पेड़-पौधों, पत्थरों से ही सही, संवाद कर!

                -कमलेश भट्ट कमल

तन्हा तन्हा रो लेने से

तन्हा तन्हा रो लेने से कुछ न बनेगा कुछ न बना
मिल-जुल कर आवाज़ उठाओ पर्वत भी हिल जाएगा

                            -नाज़िश प्रतापगढ़ी

ले दे के अपने पास

ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम

                    -साहिर लुधियानवी

मैं सावधान हूँ

मैं सावधान हूँ तुझसे, तू मुझसे चौकन्ना
तनिक तो सोच कि ये भी है कोई रिश्ता क्या 

-सुरेन्द्र सिंघल  

मैं इतनी बात तो

मैं इतनी बात तो दावे के साथ कहता हूँ
किसी भी राम से, रावण बड़ा नहीं होता

          -ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

मेरी कोशिश है

मेरी कोशिश है कि मुझको छोड़कर जायें न खुशियाँ
और ग़म कहता कि ऐ इंसान, क्या तू बावला है

-ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

मुँह माँगी क़ीमत पर

मुँह माँगी क़ीमत पर फिर से झूठ बिक गया
सच्चाई को लेकर कितना मोल-भाव है?

                -कमलेश भट्ट कमल

बढ़ने ही नहीं देता

बढ़ने ही नहीं देता आगे, क़दमों से लिपटा रहता है 
दिल्ली में आया ही था क्यों, मैं साथ अपना क़स्बा लेकर

-सुरेन्द्र सिंघल

जुल्म के गाढ़े

जुल्म के गाढ़े कुहासे की सतह को चीरकर
हम निकल ही जायेंगे दिन के उजालों की तरह

                 -नचिकेता

मेले से बुंदे,

मेले से बुंदे, बाल-पिनें कुछ नहीं लिए
मेरी ग़यूर बेटी ने चादर ख़रीद ली 

-कैफ़ी संभली

दीवारों को छोटा

दीवारों को छोटा करना मुश्किल है 
अपने क़द को ऊँचा कर के देखा जाए

-भारत भूषण पंत

अँधेरा था तो

अँधेरा था तो ये सारे शजर कितने अकेले थे
खुली जो धूप तो हर पेड़ से साया निकल आया 

-भारत भूषण पंत 

Saturday, December 30, 2023

हैं अपनी जगह

हैं अपनी जगह क़हक़हें कुर्सियों के,
सिसकता प्रजातन्त्र अपनी जगह है।

-शिव ओम अम्बर

नदी के वेग को

नदी के वेग को ज्यादा नहीं तुम बाँध पाओगे
जो हद हो जाएगी तो ठान लेगी सब मिटाने की

-ममता किरण

इतने दिये बुझाए

इतने दिये बुझाए पागल आंधी ने,
सत्त रही दलाल, हाल के दंगे में।

-विजय किशोर मानव

मैं एक कतरा हूँ

मैं एक कतरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है

-कृष्ण बिहारी नूर

खुद भी खो जाती है

खुद भी खो जाती है, मिट जाती है, मर जाती है
जब कोई क़ौम कभी अपनी ज़बाँ छोड़ती है

-कृष्ण बिहारी नूर

कट चुका जंगल

कट चुका जंगल मगर ज़िद पर अड़ी है
एक चिड़िया घोंसला ले कर खड़ी है

-विजय कुमार स्वर्णकार

तुम्हारे पाँव के नीचे

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

-दुष्यंत कुमार

हम तो सूरज हैं

हम तो सूरज हैं सर्द मुल्कों के,
मूड आता है तब निकलते हैं।

  -सूर्यभानु गुप्त

Friday, December 29, 2023

रिश्तों का इक हुजूम

रिश्तों का इक हुजूम था कहने को आस-पास,
जब वक़्त आ पड़ा तो तअ'ल्लुक़ सिमट गए।

-सीमाब सुल्तानपुरी

सत्ता के सूराखों में

सत्ता के सूराखों में है मज़हब की बारूद भरी, 
आग न इसमें लग जाए फिर मानवता है डरी हुई। 

-हरेराम समीप

ये जो संसद में

ये जो संसद में बिराजे हैं कई गोबर-गनेश, 
और कब तक हम उतारें इन बुतों की आरती।

-हरेराम समीप

बिल्ली ने उस रात

बिल्ली ने उस रात घोंसला जब चिड़िया का तोड़ दिया, 
पूरी रात बिना बच्चों के चीखी थी चिड़िया रानी। 

-हरेराम समीप

बाढ़ की संभावनाएँ

बाढ़ की संभावनाएँ जिस जगह आँकी गईं, 
दूर तक फैला हुआ वो एक रेगिस्तान है। 

-सुरेश सपन

बड़े से भी बड़े

बड़े से भी बड़े पर्वत का सीना चीरता है खुद, 
किसी के पाँव से चलकर कोई दरिया नहीं आता।

            -हरेराम समीप

तेरहवीं के दिन

तेरहवीं के दिन बेटों के बीच बहस बस इतनी थी, 
किसने कितने ख़र्च किए हैं अम्मा की बीमारी में।
 
-हरेराम समीप

जब से महानगर में आया

जब से महानगर में आया आकर ऐसा उलझा मैं, 
भूल गया हूँ घर ही अपना घर की जिम्मेदारी में।

-हरेराम समीप 

चुपके-चुपके घर की

चुपके-चुपके घर की अलमारी में दीमक लग गई, 
ध्यान रख लेते तो बच जाते बड़े नुकसान से।

-हरेराम समीप

कुछ तो बोलो

कुछ तो बोलो आपस तुम बातचीत मत बंद करो, 
पड़ जाएगी सम्बंधों को वर्ना ढोनी ख़ामोशी।

        -हरेराम समीप

क्यों बुतों को

क्यों बुतों को दण्डवत कर और पूजा-पाठ कर, 
लोग चल देते हैं घर से फिर गुनाहों के लिए। 

-हरेराम समीप

इस ओर नागनाथ है

इस ओर नागनाथ है उस ओर साँपनाथ, 
इसको जिताइए कभी उसको जिताइए।
 
-हरेराम समीप

आप उसके

आप उसके हौसले की दाद दें, 
वो, जो सच कहने से घबराता नहीं। 

-सुरेश सपन

किसी पर तुम करो

किसी पर तुम करो एहसां तो उसको याद मत रखना, 
कोई एहसान कर जाये तो उसको भूल मत जाना। 

                 -सुरेश सपन

कौन कहता है

कौन कहता है सफर में हम अकेले रह गए, 
साथ हैं अब भी हमारे, क़ाफ़िले उम्मीद के।

            -कमलेश भट्ट कमल

हर आँसू की

हर आँसू की अपनी क़ीमत होती है, 
छोटी-छोटी बात पे रोना ठीक नहीं।
 
-पवन कुमार

वक़्त मुश्किल हो

वक़्त मुश्किल हो तो ये सोच के चुप रहता हूँ, 
कुछ ही लम्हों में ये लम्हे भी पुराने होंगे। 

   -पवन कुमार

लहरों को भेजता है

लहरों को भेजता है तकाज़े के वास्ते, 
साहिल है क़र्ज़दार समंदर मुनीम है। 

-पवन कुमार

मेरे मुँह पर मेरे जैसी

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी, 
रंग बदलती इस दुनिया में सब कुछ है किरदार नहीं। 

-पवन कुमार

मज़हब, दौलत

मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, ग़ैरत, खुद्दारी, 
एक मुहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए।

-पवन कुमार

बेहतर कल की

बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर, 
अच्छे ख़ासे आज को खोना ठीक नहीं। 

-पवन कुमार

बेतरतीब-सा घर

बेतरतीब-सा घर ही अच्छा लगता है, 
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया। 

-पवन कुमार

फ़ेहरिस्त में तो

फ़ेहरिस्त में तो नाम बहुत दर्ज हैं मगर, 
जो गर्दिशों में साथ रहे वो नदीम है। 

               -पवन कुमार

ज़रूरत आदमी को

ज़रूरत आदमी को, आदमी रहने नहीं देती, 
मगर सब, इस हक़ीक़त से, हमेशा मुँह छुपाते हैं।
 
-पवन कुमार

किसी मुश्किल में

किसी मुश्किल में वो ताक़त कहाँ जो रास्ता रोके, 
मैं जब घर से निकलता हूँ तो माँ टीका लगाती है। 

-पवन कुमार

नज़दीकी अक्सर

नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती है,
सोच-समझ कर घुलना-मिलना, अपने रिश्ते-दारों में।

-आलोक श्रीवास्तव

चहकते घर

चहकते घर, महकते खेत और वो गाँव की गलियाँ,
जिन्हें हम छोड़ आए, उन सभी को जीते रहते हैं।

-आलोक श्रीवास्तव 

भीतर से ख़ालिस

भीतर से ख़ालिस जज़्बाती और ऊपर से ठेठ-पिता,
अलग, अनूठा, अनबूझा-सा इक तेवर थे बाबू जी।

-आलोक श्रीवास्तव

घर में झीने-रिश्ते मैं ने

घर में झीने-रिश्ते मैं ने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्माँ।

-आलोक श्रीवास्तव

तुम सोच रहे हो बस

तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।

-आलोक श्रीवास्तव

ऐसी-वैसी बातों से तो

ऐसी-वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहो,
या फिर ऐसी बात करो जो खामोशी से अच्छी हो।

                 -नवाज़ देवबंदी

दोपहर तक बिक गया

दोपहर तक बिक गया बाजार में एक -एक झूठ,
शाम तक बैठे रहे हम अपनी सच्चाई लिए।

            -विजेन्द्र सिंह परवाज़

चला जाता हूँ

चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे हवादिस से,
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए।

          -असगर गोंडवी

Thursday, December 28, 2023

कहीं न सब को

कहीं न सब को समुंदर बहा के ले जाए,
ये खेल ख़त्म करो कश्तियाँ बदलने का।

-शहरयार 

उम्र भर सच ही

उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने।

-शहरयार

बहुत पहले से

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, 
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं। 

-फिराक़ गोरखपुरी 

ग़रज़ कि काट दिए

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त, 
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।

-फिराक़ गोरखपुरी  

इक उम्र कट गई

इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में, 
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात।

-फिराक़ गोरखपुरी 

एक मुद्दत से

एक मुद्दत से तेरी याद भी आयी न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं।

-फ़िराक़ गोरखपुरी  

अब रात की

अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी, 
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा।

-शहरयार

कब तक पड़े रहोगे

कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में, 
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार। 

-आदिल मंसूरी

मेरे टूटे हौसले के

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया

    -आदिल मंसूरी 



[आदिल मंसूरी, 18- 5- 1936   -    06-11-2008, अहमदाबाद]

कमर बाँधे हुए

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं,
बहुत आगे गए, बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं।

-इंशा अल्लाह ख़ान इंशा

गुज़रने को तो

गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे,
ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा। 

-कैफ़ी आज़मी

शोर यूँही न

शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।

-कैफ़ी आज़मी

मैं रौशनी हूँ

मैं रौशनी हूँ, तो मेरी पहुँच कहाँ तक है,
कभी चराग़ के नीचे बिखर के देखूँगी। 

   -अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

सँभाला होश जब

सँभाला होश जब हम ने तो कुछ मुख़्लिस अज़ीज़ों ने,
कई चेहरे दिए और एक पत्थर की ज़बाँ हम को।

-अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

परिंदे अब भी

परिंदे अब भी चहकते हैं गुल महकते हैं,
सुना है कुछ भी अभी तक वहाँ नहीं बदला।

-उबैद सिद्दीकी

काले चेहरे

काले चेहरे काली ख़ुश्बू सब को हम ने देखा है,
अपनी आँखों से उन को शर्मिंदा हर इक बार किया।
   
-मीना कुमारी 'नाज़'




.....................................................
* सुप्रसिद्ध सिनेतारिका 'मीना कुमारी' ( 1933 - 1972 )

बैठे हैं रास्ते में

बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडर सजा कर,
शायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे।

-मीना कुमारी 'नाज़'

झूटे सिक्कों में भी

झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदे करना, काम है इन बंजारों का।

-इब्न-ए-इंशा